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Ram Kumar Verma Rachna Sanchyan
₹250.00 ₹249.00
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Author: Raj Laxmi Verma
Pages: 391
Year: 2022
Binding: Paperback
ISBN: 9789355482044
Language: Hindi
Publisher: Sahitya Academy
रामकुमार वर्मा रचना-संचयन
रामकुमारजी भारतीय संस्कृति के उद्बाता और राष्ट्रीय जागरण एवं पुनरुत्थान के प्रतिनिधि लेखक हैं। इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रीयता से ओतप्रोत ‘भारतीयता’ उनके साहित्य का प्रमुख स्वर है। राष्ट्र उनके लिये कोई भूखण्ड या राजनीतिक इकाई नहीं है, वह अतीत से वर्तमान तक बहती हुई आदर्शों, संस्कारों और विश्वासों की ऐसी गतिशील परम्परा है जिसने समय के प्रवाह में अपने जीवनाधारक तत्त्वों के बल पर अपनी सत्ता और सार्थकता बनाये रखी है। वर्माजी का साहित्य उन जीवनमूल्यों को चिह्नित करता है जो मानवता के समग्र कल्याण की अनिवार्य शर्त हैं। भारत की संस्कृति और जीवनदर्शन में जो कुछ भी सकारात्मक और संरक्षणीय है उसे वे अपने साहित्य में सँजोने का प्रयत्न करते हैं। रामकुमार वर्मा अपने युग के यथार्थ और उसकी चेतना से गहरी सम्पृक्ति रखने वाले एक ऐसे रचनाकार हैं जो प्राचीन और नवीन के कल्याणकर समन्वय के द्वारा अपने युग को एक रचनात्मक और लोकसंग्रहपरक दृष्टि देना चाहते हैं।
रामकुमार वर्मा साहित्यकारों की उस परम्परा में आते हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के स्वरूप-निर्माण और स्वरूप-निर्धारण में किया है। उनकी रचनाशीलता में कारयित्री और भावयित्री प्रतिभाएँ समानान्तर चलती हैं । सर्जनात्मक प्रतिभा का चमत्कार उनकी कविता और नाटकों में दिखलायी देता है और विश्लेषणात्मक प्रतिभा का उत्कर्ष उनकी आलोचनात्मक कृतियों में उपलब्ध होता है। वे छायावाद युग के एक प्रमुख कवि हैं, छायावाद की ‘लघुत्रयी’ में उनका स्थान है। एकांकी-लेखन के क्षेत्र में जहाँ वे एक प्रवर्तक की भूमिका में हैं वहीं समालोचना और साहित्य के इतिहास-लेखन को भी वे नये आयाम देते हैं। कबीर का रहस्यवाद, सन्त कबीर और हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास जैसी कृतियाँ उनकी अनुसन्धान-परक समालोचना का उदाहरण हैं।
इस संचयन को प्रस्तुत करते हुए इस बात का ध्यान रखा गया है कि रामकुमारजी की रचनाधर्मिता के सभी रूपों से पाठकों का परिचय हो सके। इसके लिये उनके सभी विधाओं के साहित्य से ऐसे प्रतिनिधिभूत अंशों का चयन किया गया है जो उनके रचनात्मक वैशिष्ट्य को रेखांकित करते हैं। उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियों की भूमिकाओं के कुछ अंश भी संकलित किये गये हैं जो उनके चिन्तन की दिशा को स्पष्ट करते हैं और लेखक एवं पाठक के बीच वैचारिक तथा भावनात्मक स्तर पर संवाद स्थापित करने में सहायक सिद्ध होंगे।
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Binding | Paperback |
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Language | Hindi |
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Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
राजलक्ष्मी वर्मा (जन्म : 1947, इलाहाबाद, उ.प्र.) इलाहाबाद युनिवर्सिटी के संस्कृत, पालि, प्राकृत तथा प्राच्यभाषा विभाग में प्रोफ़ेसर तथा अध्यक्ष रहीं।
प्रकाशित रचनाएँ : आचार्य वल्लभ और उनका दर्शन, पद्मपत्रमिवाम्भसा (स्वामी विष्णुतीर्थ पुरस्कार से सम्मानित), रामरस। संचयन एवं सम्पादन : ज्ञानदीप; अनुभूति डॉ. रामकुमार वर्मा गौरव-ग्रन्थ; डॉ. रामकुमार वर्मा रचनावली (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से प्रकाशित)।
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