Sandhini

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Author: Mahadevi Verma

Availability: 5 in stock

Pages: 135

Year: 2007

Binding: Hardbound

ISBN: 9788180316180

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

प्रस्तुत संग्रह ‘सन्धिनी’में मेरे कुछ गीत संगृहीत हैं। काल-प्रवाह का वर्षों में फैला हुआ चौड़ा पाट उन्हें एक-दूसरे से दूर और दूरतम की स्थिति दे देता है। परन्तु मेरे विचार में उनकी स्थिति एक नदी-तट से प्रवाहित दीपों के समान है। दीपदान के दीपकों में कुछ, जल की कम गहरी मन्‍थरता के कारण उसी तट पर ठहर जाते हैं, कुछ समीर के झोंके से उत्पन्न तरंग-भंगिमा में पड़कर दूसरे तट की दिशा में बह चलते हैं और कुछ मँझधार की तरंगाकुलता के साथ किसी अव्यक्त क्षितिज की ओर बढ़ते रहते हैं। परन्तु दीपकों की इन सापेक्ष दूरियों पर दीपदान देनेवाले की मंगलाशा सूक्ष्म अन्तरिक्ष-मण्डल के समान फैलकर उन्हें अपनी अलक्ष्य छाया में एक रखती है। मेरे गीतों पर भी मेरी एक आस्था की छाया है। मनुष्य की आस्था की कसौटी काल का क्षण नहीं बन सकता, क्योंकि वह तो काल पर मनुष्य का स्वनिर्मित सीमावतरण है।

वस्तुतः उनकी कसौटी क्षणों की अटूट संसृति से बना काल का अजस्र प्रवाह ही रहेगा। ‘सन्धिनी’नाम साधना के क्षेत्र से सम्बन्ध रखने के कारण बिखरी अनुभूतियों की एकता का संकेत भी दे सकता है और व्यष्टिगत चेतना का समष्टिगत चेतना में संक्रमण भी व्यंजित कर सकेगा ।

-महादेवी

पंक्ति-क्रम

 

1 निशा को, धो देता राकेश 23
2 वे मुस्काते फूल, नहीं 25
3 छाया की आँखमिचौनी 27
4 इस एक बूँद आँसू में 29
5 जिस दिन नीरव तारों से 31
6 मधुरिमा के, मधु के अवतार 34
7 जो तुम आ जाते एक बार 36
8 चुभते ही तेरा अरुण बान 37
9 शून्यता में निद्रा की बन 39
10 रजत-रश्मियों की छाया में धूमिल घन-सा वह आता 42
11 कुमुद-दल से वेदना के दाग को 44
12 स्मित तुम्हारी से छलक यह ज्योत्स्ना अम्लान 4
13 इन आँखों ने देखी न राह कहीं 48
14 दिया क्यों जीवन का वरदान 50
15 कह दे माँ क्या अब देखूँ 51
16 तुम हो विधु के बिम्ब और मैं 54
17 प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर 59
18 धीरे-धीरे उतर क्षितिज से 60
19 पुलक-पुलक उर, सिहर-सिहर तन 62
20 कौन तुम मेरे हृदय में 64
21 विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात 66
22 बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ 67
23 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल 69
24 टूट गया वह दर्पण निर्मम 72
25 मुस्काता संकेत-भरा नभ 74
26 झरते नित लोचन  मेरे हों 76
27 लाये कौन संदेश नये घन 78
28 प्राणपिक प्रिय-नाम रे कह 80
29 क्या पूजन क्या अर्चन रे 82
30 जाग बेसुध जाग 83
31 प्रिय ! सान्धय गगन 84
32 रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले 86
33 जाने किस जीवन की सुधि ले 88
34 शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी 89
35 शलभ मैं शापमय वर हूँ 90
36 मैं सजग चिर साधना ले 92
37 मैं नीर भरी दुख की बदली 93
38 फिर विकल  हैं प्राण मेरे 95
39 चिर सजग आखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना 96
40 कीर का प्रिय आज पिञ्जय खोल  दो 98
41 क्यों मुझे प्रिय हों न बन्धन 100
42 हे चिर महान् 102
43 तिमिर में वे पदचिह्न मिले 104
44 दीप मेरे जल अकम्पित 105
45 पन्थ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला 107
46 प्राण हँसकर ले चला जब 109
47 सब बुझे दीपक जला लूँ 111
48 हुए शूल अक्षत मुझे धूलि चन्दन 113
49 कहाँ से आये बादल काले 115
50 यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो 117
51 तू धूल भरा ही आया 119
52 आँसुओं के देश में 121
53 मिट चली घटा अधीर 123
54 अलि कहाँ सन्देश भेजूँ 125
55 सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्य पला 126
56 क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे 128
57 पथ मेरा निर्वाण बन गया 130
58 पूछता क्यों शेष कितनी रात 132
59 तू भू के प्राणों का शतदल 133
60 पुजारी दीप कहीं सोता है 135
61 सजल है कितना सवेरा 137
62 अलि मैं कण-कण को जान चली 138
63 यह विदा वेला 140
64 नहीं हलाहल शेष, तरल ज्वाला से अब प्याला भरती हूँ 144
65 हे धरा के अमर सुत ! तुमको अशेष प्रणाम 145

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Authors

Binding

Hardbound

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Pages

Publishing Year

2007

Pulisher

Language

Hindi

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