Sarvamangla

-12%

Sarvamangla

Sarvamangla

250.00 220.00

In stock

250.00 220.00

Author: Gurudutt

Availability: 4 in stock

Pages: 168

Year: 2015

Binding: Hardbound

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

सर्वमंगला

1

नयी दिल्ली में बारह खम्भा रोड की एक विशाल कोठी के सुसज्जित ड्राइंगरूम में लाला जुगलकिशोर और उनके सुपुत्र बदरीप्रसाद में वार्तालाप चल रहा था।

जुगलकिशोर सरकारी ठेकेदार था और युद्ध-कार्यों में सरकार को सहयोग देते हुए लाखों की आय कर रहा था। पुत्र बदरीप्रसाद ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में बन्दी बनाया जाकर दो वर्ष का कठोर दण्ड भोगकर लौटा था।

‘भारत छोड़ो’’ आन्दोलन उस विशाल स्वराज्य आन्दोलन का एक भाग ही था, जो गांधीजी के नाम से हिन्दुस्तान में सन् 1918 से चलाया जा रहा था। यह आन्दोलन अगस्त 1942 में आरम्भ किया गया था। सभी आन्दोलनों की भांति इस आन्दोलन के भी दो अंग थे। एक था नारेबाजी व जलसे-जुलूस का और दूसरा था, तोड़-फोड़ का।

नारेबाज़ी वाला अंग तो एक सप्ताह में ठण्डा कर दिया गया, परन्तु तोड़-फोड़ वाला अंग अधिक समय तक उग्र रहा। पूरे देश में, यहां तक कि देहातों में भी तोड़-फोड़ चली और एक-दो स्थानों पर तो अंगरेज सरकार की समानान्तर सरकार भी स्थापित करने का यत्न किया गया।

लाला जुगलकिशोर का लड़का बदरीप्रसाद आन्दोलन के इस दूसरे अंग का कार्यकर्ता था। सितम्बर मास में एक दिन डाक के डब्बे में फासफ़ोरस की टुकड़ी डालते हुए वह पकड़ा गया और ‘डिफ़ेंस आफ़ इण्डिया रूल्ज़’ के अन्तर्गत उसे दो वर्ष का कठोर दण्ड दिया गया। उस समय वह बी.ए. प्रथम वर्ष का विद्यार्थी था।

बदरीप्रसाद जेल से जून, सन् 1944 में छूटा। जेल से तांगा करके वह सीधा घर पहुंचा, तो उस समय उसका पिता कोठी के बरामदे में खड़ा निर्माण-कार्य के जमादारों और मुंशियों से कारोबार सम्बन्धी बातचीत कर रहा था।

पिता ने पुत्र को तांगे से उतरते देखा, तो हर्ष अथवा शोक प्रकट किये बिना उसकी ओर मुंह करके पूछने लगा, ‘‘आ गये बरखुरदार।’’

‘‘हां, पिताजी।’’

‘‘अच्छा, चलो भीतर। मैं अभी आता हूं।’’

एक सप्ताह-भर पुत्र को आराम करने का अवसर देकर एक दिन पिता ने पुत्र को ड्राइंगरूम में बुलाकर उसके भावी कार्य के विषय में पूछना आरम्भ कर दिया। पिता ने पूछा, ‘‘अब बताओ बदरी, क्या करने का विचार है?’’

‘‘पिताजी ! मैं बी.ए. में प्रवेश लेने का विचार कर रहा हूं।’’

‘‘और फिर ?’’

‘‘बी.ए. के बाद मैं विलायत जाऊंगा और बैरिस्टर बनूंगा।’’

‘‘इससे क्या होगा ?’’

‘‘मेरा जीवन-कार्य सुचारु रूप से चल सकेगा।’’

इस पर पिता ने कह दिया, ‘‘देखो बदरी, पढ़ाई-लिखाई बहुत हो चुकी । अब कुछ काम-धन्धा करने की सोचो।’’

पुत्र ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘पिताजी, अब तक जो पढ़ाई की है और पिछले दो वर्षों से जो मैं कर रहा हूं, क्या वह काम नहीं था ?’’

पिता हंस पड़ा। हंसकर बोला, ‘‘मेरा अभिप्राय है, वह तुम्हारे जीवन का कार्य नहीं है। मैं समझता हूं कि तुम्हारे जीवन के दो वर्ष व्यर्थ निकल गये।’’

पिता ने अपनी बात की व्याख्या करते हुए कहा, ‘‘यदि वह कार्य था भी, तो मंगलकारी नहीं था। मैं तुम्हें ऐसे कार्य में लगाना चाहता हूं, जो सर्वमंगला हो।’’

‘‘सर्वमंगला ? पिताजी, मैं सब के मंगल की कामना नहीं कर सकता। मै तो अंगरेज सरकार का भारत से उन्मूलन करने में लगा हुआ हूं।’’

‘‘परन्तु बेटा ! तुम नहीं समझते। वह भी एक प्रकार से मंगल कार्य ही था। ये मूर्ख शासक नहीं जानते कि वास्तव में तुम उनका मंगल ही कर रहे थे।’’

‘‘नहीं पिताजी ! इससे उनका कोई मंगल नहीं होने वाला है। मैं तो उनके सर्वनाश की योजना बना रहा हूं।’’

‘‘पर उनका कल्याण हो रहा है। भविष्य में आने वाले कोटि-कोटि जन अंगरेजी राज्य की महिमा का गान करते रहेंगे। बिना कुछ भी ख़ून-ख़राबा किये, वे चुपचाप भारत-जैसे विशाल देश को छोड़कर जा रहे हैं। यह इतिहास में अंगरेजों के नाम को रौशन करता रहेगा।’’

‘‘और हम स्वराज्य प्राप्त करने वालों का नाम रौशन नहीं होगा ?’’

‘‘यह विवादास्पद है कि स्वराज्य तुम लोगों की करनी से आ रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि अंगरेज हिन्दुस्तान से जा रहा है।’’

पुत्र युक्ति में पराजित नहीं हुआ था। उसने कह दिया, ‘‘पिताजी ! अंगरेज तो एक भीरु कौम है। हम लोगों के ज़रा-से घूर देने से ही भाग खड़ी हुई है।’’

‘‘बदरी ! ऐसा नहीं है। अंगरेज भीरु नहीं है। भीरु होता, तो जर्मनी-जैसे शक्तिशाली राज्य के साथ पाच वर्ष तक घोर युद्ध न कर सकता। इस युद्ध में अंगरेजों ने महान् शौर्य और उत्कृष्ट बुद्धि का परिचय दिया है। उनके भारत छोड़कर जाने के कारण अन्य हैं और उनके कारण ही उनकी वृद्धिमत्ता, धैर्य तथा सज्जनता के गुणगान किये जायेंगे।

पुत्र पिता की बात को समझ नहीं सका। वह पिता को अनभिज्ञ जान ,बात बदलकर पूछने लगा, ‘‘तो आप मुझे क्या करने को कहते हैं ?’’

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2015

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Sarvamangla”

You've just added this product to the cart:

error: Content is protected !!