Teen Sau Tees Kahavati Kahaniyan
Teen Sau Tees Kahavati Kahaniyan
₹350.00 ₹280.00
₹350.00 ₹280.00
Author: Vijaydan Detha
Pages: 472
Year: 2015
Binding: Paperback
ISBN: 9789350726082
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
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Description
तीन सौ तीस कहावती कहानियाँ
एक बार दो मित्र चाँदनी रात में नदी के किनारे घूम रहे थे। एक मित्र को अचानक पानी के बहाव में काला-स्याह एक कम्बल तैरता नजर आया तो वह धीरज नहीं रख सका। लालची भी कुछ जरूरत से ज्यादा था। कपड़ों सहित नदी में छलाँग मारी और कम्बल को बायें हाथ से पकड़ लिया। पर आश्चर्य कि दूसरे ही क्षण कम्बल उसे अपनी ओर खींचने लगा तो वह जोर-जोर से चिल्लाया, रीछ…रीछ…रीछ। मित्र ने किनारे पर खड़े-खड़े ही सलाह दी – छोड़ दे…छोड़ दे। तब मित्र ने हताश होकर कहा, ‘म्हैं तौ छोडूँ पण कांबळ नीं छोड़ै।’ वह तो छोड़ने को तैयार था, लेकिन कम्बल उसे नहीं छोड़ रहा था। लालच में फँसने के बाद छुटकारा पाना आसान नहीं है। अपनी विकास यात्रा के दौरान मनुष्य ने ज्ञान-विज्ञान, धर्म, दर्शन, सम्प्रदाय और जाति-रिश्तों को आवश्यकतानुसार ईजाद किया, पर एक बार अस्तित्व में आने के बाद मनुष्य की तमाम सृष्टि ने कम्बल की नाईं उसे ही जकड़ लिया। वह छोड़ना चाहे तब भी कम्बल उसे नहीं छोड़ेगा, उसे नोच-नोचकर निगल जाएगा।
मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कोई भी पेशा चुनता है, किन्तु कुछ समय बीतने के बाद वह पेशा ही उसे अपने नागपाश में आबद्ध कर लेता है। आधुनिक सभ्यता के नाम पर मनुष्य ने क्या-क्या करतब नहीं रचे! पर साथ-ही-साथ उसने विध्वंसक हथियारों की होड़ में भी कोई कसर नहीं रखी। मनुष्य ही समूचे विकास का नियंता है और वही समूचे विनाश का एकमात्रा कारण बनेगा। म्हे ई खेल्या अर म्हे ई ढाया। हम ही खेले और हमने ही बिखेरे। हमने ही घरौंदे बनाये और हमने ही ढहाये। यह कहावत समष्टि के लिए भी उपयुक्त है और व्यष्टि के लिए भी कि मनुष्य बचपन और युवा अवस्था में कई नये-नये खेल खेलता है और उन्हें भूलता रहता है।
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
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