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Description
तीन तिलंगे
1925 के अप्रैल मास के एक दिन की बात है। उस दिन सोमवार था। फ्रांस के एक नगर में उस दिन बड़ा कोलाहल मचा हुआ था। चारों तरफ लोग दौड़-भाग रहे थे। बच्चे-बूढ़े सभी एक सराय की ओर भागे जा रहे थे। किसी को पता नहीं था आख़िर क्या बात है। देखते-ही-देखते ही सराय के आगे लोगों की भीड़ जमा हो गई। लोग एक नौजवान की ओर देख रहे थे।
उस नौजवान की उम्र अठारह-उन्नीस साल की थी। वह रेशमी कपड़े पहने था और कमर में एक लम्बी तलवार बाँधे था। पास ही उसका घोड़ा खड़ा था, जो देखने में बिलकुल बूढ़ा और मरियल मालूम होता था। लोग इस विचित्र सरदार को आश्चर्य से देख रहे थे और हंसी-मज़ाक कर रहे थे।
यह नौजवान एक छोटा-मोटा ‘तीसमार ख़ां’ था। अगर आपने ‘तीसमार ख़ां’ या ‘डान क्विक्ज़ोट’ की कहानी पढ़ी होगी, तो आसानी से समझ लेगें कि इस विचित्र सरदार व इसके घोड़े को देखने के लिए नगर के इतने लोग क्यों उमड़ पड़े थे।
यह नन्हा तीसमार ख़ां संसार में बहादुरी के काम करने के लिए घर से निकला। उस समय पिता ने इसे अपना सबसे प्यारा घोड़ा दिया और कुछ सीख भी दी।
पिता ने इससे कहा था, ‘‘बेटा, तुम परदेश जा रहे हो, इसलिए मेरी दो-चार बातें याद रखना। मैं तुम्हें अपना यह घोड़ा दे रहा हूं। यह तुम्हारी तरह इसी घर में जन्मा था और अब तक बारह-तेरह साल का हो चुका है। अच्छा सुनो, पहली बात तो यह है कि अगर तुम कभी सौभाग्य से सम्राट के दरबार में पहुंच सको तो तुम अपने ख़ानदान के ऊंचे नाम को न भूलना। अपने ख़ानदान की इज्जत अब तुम्हारे ही हाथ में है। इतना याद रखना कि तुम्हें सम्राट के अलावा और किसी के आगे सिर झुकाने की ज़रूरत नहीं है।
‘‘तुम्हें देने के लिए मेरे पास और कुछ नहीं है, लो यह पन्द्रह क्राउन अपने पास रख लो। दूसरी बात यह है कि तुम्हारी मां ने एक ख़ानाबदोश औरत से एक मरहम बनाना सीखा था। तुम भी इसे बनाने का हुनर सीख लो। इसे किसी घाव पर लगाने से थोड़े ही समय में घाव ठीक हो जाता है।
‘‘इसके अलावा तुम पेरिस में एक पुराने सरदार से ज़रूर मिलना। तुम्हारे लिए उनका जीवन आदर्श है। उनका नाम है मस्यो त्रिवेल। हम दोनों में बड़ी दोस्ती थी। आजकल वे सम्राट के अंगरंक्षकों के सेनापति हैं। उन्हें दस हज़ार महीना क्राउन वेतन मिलता है। लेकिन एक दिन वे तुम्हारे जैसे ही साधारण आदमी थे। मैं उनके नाम तुम्हें एक चिट्ठी लिख देता हूं।’’
इस तरह सीख देकर पिता ने उसको आशीर्वाद दिया और घर से विदा किया। इस नौजवान का नाम दार्ता था। सराय के पास इकट्ठी भीड़ की परवाह न करके दार्ता ने देखा कि सराय की खिड़की में एक लम्बा-तगड़ा आदमी बैठा था और उसकी ओर इशारे करके अपने पास बैठे दो आदमियों से कुछ कह रहा था। दार्ता ने सुना कि असल में वे लोग उसके घोड़े के बारे में हंसी-मज़ाक कर रहे थे। दार्ता को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने सोचा कि देहात का रहने वाला हूं, इसलिए ये लोग मेरा मज़ाक बना रहे हैं, यह सब सहन नहीं करना चाहिए।
वह गुस्से में कांपते हुए बोला, ‘‘क्यों साहब, आप खिड़की में बैठकर अपने को क्या समझ रहे हैं ? मैं जानना चाहूंगा कि आप मुझे देखकर आख़िर हंस क्यों रहे हैं ?’’
उसकी बात सुनकर पहले तो सब चौंके, लेकिन फिर ठट्ठा मारकर हंस पड़े। इससे दार्ता को और भी बुरा लगा और उसका हाथ तलवार की मूठ पर पहुंच गया। यह देखकर उस लम्बे-चौड़े आदमी ने, जो शायद कोई फ़ौजी सरदार था, उस घोड़े की ओर उंगली उठाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारा घोड़ अब बुढ़ौती के मारे खच्चर हो गया है। इसी मरियल घोड़े को देखकर हम लोग हंस रहे हैं।’’
दार्ता ने कड़ककर कहा, ‘‘घोड़ा देखकर तुम लोग भले ही हंस, लो, लेकिन घुड़सवार को देखकर तुम्हारी हंसी बन्द हो जाएगी।’’
‘‘अच्छा तो यह बात है !’’ यह कहकर सरदार नीचे उतर आया और दार्ता को घूरते हुए बोला, ‘‘जाओ, अभी तुम बच्चे हो।’’ और वह घूमकर दूसरी ओर जाने लगा।
इतने में ही दार्ता ने तलवार खींच ली और गरजकर बोला, ‘‘पीठ फेरकर कहाँ जा रहे हो ? मैं किसी की पीठ पर वार नहीं करता।’’
‘‘कैसा वार ! तुम मुझसे लड़ना चाहते हो ?’’ सरदार ने पलटकर कहा, ‘‘छोकरे, तेरा दिमाग़ तो ख़राब नहीं हो गया है !’’
लेकिन तब तक दार्ता ने उछलकर उस पर वार भी कर दिया। अगर सरदार समय रहते ही हट न गया होता, तो उसका सिर ज़मीन पर आ गिरा होता। अब उसकी समझ में आया कि यह लड़का मज़ाक नहीं कर रहा है। देखते-देखते सरदार के दूसरे साथी भी तलवारें लेकर दार्ता पर टूट पड़े।
लेकिन दार्ता बिलकुल नहीं घबराया। वह उनका मुकाबला करने लगा। सरदार ने अपने साथियों से कहा, ‘‘इसको मारने की ज़रूरत नहीं, इसकी तलवार छीन लो और इसे इसके मरियल घोड़े पर बैठाकर शहर के बाहर निकाल दो।’’
दार्ता ने तलवार चलाते-चलाते जवाब दिया, ‘‘जाओ, जाओ ! तुम्हारे जैसे बहुत देखे हैं ! शहर तो मैं छोड़ ही दूंगा, लेकिन तुम्हारा सिर काटकर छोड़ूंगा।’’
यह सुनकर सरदार ने मन-ही-मन—कहा ऐसा शानदार लड़का तो बहुत दिनों बाद देखने में आया। तब तक एक आदमी की तलवार से दार्ता लड़खड़ा गया और ज़मीन पर गिर पड़ा।
अब तक वहाँ बहुत-से लोग इकट्ठे हो गए थे। सरदार के कहने पर सराय के मालिक ने दार्ता को उठाकर अन्दर कमरे में पहुंचाया। कमरे में ले जाकर उसके मुंह पर पानी के छींटे दिए जाने लगे।
कुछ देर बाद सराय वाले ने आकर सरदार से कहा, ‘‘हुजूर, वह लड़का बेहोश हो गया है, लेकिन बेहोश होने से पहले वह बहुत चीखता-चिल्लाता रहा। वह बार-बार अपने कुरते की जेब पर हाथ रखकर कहता था—मस्यो त्रिवेल को जब यह मालूम हो जाएगा तो वे इन लोगों को मज़ा चखाएंगे। मैं उनके काम से जा रहा था…। वह और न जाने क्या-क्या बड़बड़ा रहा था।’’
यह सुनकर सरदार चौंक पड़ा और बोला, ‘‘क्या कहा ? मस्यो त्रिवेल ? मालूम होता है, उसकी जेब में कोई गुप्त चिट्ठी है।’’
सरायवाला बोला, ‘‘जी हां, जब वह बेहोश हो गया तो मैंने यह काग़ज़ दिखाने के लिए निकाल लिया था। लीजिए यह रही चिट्ठी।’’ यह कहकर उसने चुराई हुई चिट्ठी सरदार को दे दी।
सरदार ने चिट्ठी देखकर कहा, ‘‘ठीक है। लगता है त्रिवेल ने मुझे मारने के लिए ही इस लड़के को यहां भेजा था। लेकिन हो सकता है, ऐसी बात भी हो और यह अपने किसी काम से जा रहा हो। अच्छा, मेरा घोड़ा तैयार करो। मैं ज़रा उस अंग्रेज़ लेडी से मिलकर अभी आता हूं।’’
उधर दार्ता की बेहोशी अब तक दूर हो गई थी। अचानक उसने सुना कि पास के कमरे से किसी के बातचीत करने की आवाज़ आ रही है। उत्सुकतावश वह कान लगाकर सुनने लगा। उसने सुना कि वही सरदार किसी स्त्री से कह रहा था, ‘‘तुम अब इंग्लैण्ड चली जाओ और अगर ड्यूक लंदन चले गए हों, तो तुम इसकी खबर मुझे दे देना। यह सन्दूक अपने पास रख लो। इसमें एक काग़ज़ है, जिसमें आगे के लिए सब कुछ लिखा हुआ है। लेकिन इस सन्दूक को तुम इंग्लैण्ड पहुंचकर ही खोलना। फ्रांस में इसे मत खोलना।’’
फिर दार्ता ने देखा कि अचानक वह सरदार अपने घोड़े पर सवार होकर वहां से निकला और उस स्त्री की गाड़ी दूसरी दिशा में चल दी।
दार्ता का मन हुआ कि वह सरदार का पीछा करे, लेकिन अभी उसके घाव अच्छे नहीं हुए थे और उसका घोड़ा भी इस हालत में नहीं था कि सरदार का पीछा कर सके। वह रात उसने वहीं बिताई। उसके पिता ने जो उसे मरहम दिया था, उससे दो दिन में उसने अपना घाव ठीक कर लिया। फिर वह पेरिस जाने की तैयारी करने लगा।
अचानक दार्ता को अपनी चिट्ठी की याद आई। लेकिन चिट्टी जेब से ग़ायब थी। वह तुरन्त अपनी तलवार निकालकर सरायवाले के पास पहुंचा और उससे चिट्ठी मांगने लगा। पहले तो सरायवाले ने आनाकानी की। लेकिन जब दार्ता ने अपनी तलवार उसकी छाती पर टिका दी तो वह कांपता हुआ बोला, ‘‘हुजूर माफ़ करें, आपकी चिट्ठी मेरे पास नहीं है। लेकिन में जानता हूं कि वह कहां है। दो दिन पहले जिस सरदार से आपकी लड़ाई हुई थी, वही उसे ले गया है। मेरे नौकर ने उसे आपकी जेब से चिट्ठी निकालते हुए देखा था।’’
दार्ता ने दांत पीसकर कहा, ‘‘ठीक है, उसे इसकी सज़ा मिलेगी। पेरिस पहुंचकर मैं मस्यो त्रिवेल को सारा क़िस्सा बताऊंगा और वे तुम लोगों की ख़बर लेंगे।’’
इसके बाद दार्ता ने अपना सामान बांधकर और घोड़े पर सवार होकर वहां से चल पड़ा। पेरिस पहुंचकर उसने पहला काम तो यह किया कि अपने मरियल घोड़े को सिर्फ़ तीन क्राउन में बेच दिया। फिर वह पैदल ही फ्रांस की राजधानी में दाख़िल हुआ। शहर में पहुंचकर उसने एक छोटा-सा मकान किराये पर लिया। दूसरे दिन वह अच्छे कपड़े पहनकर और कमर में तलवार लटकाकर मस्यो त्रिवेल से मिलने के लिए चल पड़ा।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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