Upasthiti Ka Arth

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Upasthiti Ka Arth

Upasthiti Ka Arth

200.00 155.00

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200.00 155.00

Author: Gyanranjan

Availability: 5 in stock

Pages: 192

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9789389830132

Language: Hindi

Publisher: Setu Prakashan

Description

उपस्थिति का अर्थ

यह तय करना अक्सर कठिन रहा है कि ज्ञानरंजन की रचनाओं में कथ्य ज्यादा विलक्षण है या उसकी भाषा। दोनों इस क़दर आपस में गँथे हैं कि उन्हें अलगाना प्याज के छिलके उतारने की तरह होगा। उनकी कहानियों ने पिछली सदी के सत्तर के दशक में मध्यवर्ग के व्यवहारों का जो बेमिसाल संधान जैसी तोड़-फोड़ करती और नया विन्यास रचती भाषा में किया था, उसकी स्मृति हिंदी साहित्य के कैनवस पर अमिट है और एक प्रचलित मुहावरे में कहें, तो ज्ञान भारतीय साहित्य के निर्माता’ का दर्जा पा चुके हैं। उनके संपादन में ‘पहल’ आज तक ‘इस महाद्वीप की जरूरी किताब’ बनी हुई है। उनका यह जादू कहानी से इतर संस्मरण, साक्षात्कार, व्याख्यान और वक्तव्य जैसी विधाओं में भी वही जगमगाहट लिये हुए होता है। वे जितने अनोखे ढंग से सोचते हैं उतने ही सम्मोहक और अप्रचलित रूप में उसे दर्ज़ भी करते हैं।

पिछला गद्य संग्रह ‘कबाड़खाना’ इसका अप्रतिम नमूना था और अब ‘उपस्थिति का अर्थ’ में उनके व्याख्यान, बातचीत और संस्मरण फिर से बताते हैं कि उनके ‘तापमान’ में कोई कमी नहीं आयी है, वे अपने सभी मोर्चों पर पहले जैसे सजग और तैनात हैं और साहित्य के भीतर की कारगुजारियों के साथ-साथ आज के उस फासिज़्म पर भी पैनी निगाह रखे हुए हैं जो ‘इस वक़्त जितने बर्बर रूप में है, ऐसा मध्य युग में भी नहीं था।’ राजनीतिक प्रतिबद्धता और विश्व-दृष्टि के धुंधले पड़ने के इस दौर में ज्ञानरंजन के लिए लिखना एक राजनीतिक कर्म है और वे जब विकास की अवधारणाओं, पूँजी और बाज़ारवाद और संचार क्रांति से जुड़े सांघातिक मसलों पर बात करते हैं तो हमें एक गंभीर समाजशास्त्रीय मस्तिष्क नज़र आता है। पुस्तक से यह भी ज़ाहिर होता है कि कहानी और कविता में परस्पर बढ़ा दी गयी नक़ली दूरियों के बीच वे कितने अपनापे से कविता के भीतर पैठते हैं। मुक्तिबोध और उनकी कविता ‘अँधेरे में’ और मराठी कवि श्रीपाद भालचंद्र जोशी पर उनके व्याख्यान एक बड़े कहानीकार की गहरी काव्य-दृष्टि का पता देते हैं। ज्ञानरंजन के निजी जीवन की वैचारिकी की कुछ झलक भी इस संचयन की उपलब्धि है।

दरअसल ज्ञानरंजन के व्यक्तित्व, तमतमाहट भरे सवाल करने वाले नागरिक, ‘पहल’ के संपादन की अंतर्दृष्टि और अवांगार्द रचना-कर्म की आश्चर्यजनक गुरुत्व-शक्ति के बारे में जितने सवाल किये जाते हैं, उनके जवाब बड़ी हद तक इस किताब की रचनाओं में सुलभ हुए हैं।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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