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Description
विनोबा संचयिता
भारत में ऐसे बहुत से विचारक हुए हैं जिन्हें अकादमिक जगत में वह स्थान प्राप्त नहीं हुआ है जिसके वे हकदार थे। उनके सार्वजनिक जीवन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भागीदारी ने उनके विचारक स्वरूप को कहीं ढक-सा लिया है। विनोबा भावे ऐसे ही व्यक्तित्व रहे हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भागीदारी ने उनके विचारक स्वरूप को कम ही उजागर होने दिया है। यह संचयिता विनोबा के विचारक स्वरूप को सामने लाने का प्रयास करती है। संपादक विनोबा के माध्यम से एक देशज ज्ञान मीमांसा एवं तत्वमीमांसा की आधारभूमि तैयार करते है जो विश्व शांति एवं मानव कल्याण हेतु शाश्वत योगदान कर सके। पांच खंडों में विभक्त यह संचयिता सिलसिलेवार ढंग से विनोबा के विचारों को परत-दर-परत खोलने का कार्य करती है। धर्म समन्वय खंड धर्म और अध्यात्म की विशेषताओं को प्रतिपादित करता हैय साम्ययोग-सर्वोदय दर्शन खंड उनके तात्विक चिंतन को प्रकट करता है जिसमें पाँच आध्यात्मिक निष्ठाएं भी शामिल हैंय आर्थिक विचार खंड उनके अहिंसक आर्थिक दर्शन को प्रस्तुत करता हैय शिक्षा एवं स्त्री-शक्ति खंड शिक्षा के उनके बुनियादी विचारों और भारतीय स्त्री विमर्श का मार्ग प्रशस्त करता है और अंत में साहित्य-चिंतन खंड उनके साहित्य संबंधी विचारों को अभिव्यक्त करता है। समग्र रूप से देखें तो विनोबा का चिंतन हमें बताता है कि आधुनिक यूरोपीय ज्ञानमीमांसा के बरक्स देशज ज्ञानमीमांसा के तत्व इस अर्थ में महत्वपूर्ण हैं कि वे विश्व शांति और मानव कल्याण हेतु प्रतिबद्ध है। विनोबा का सम्पूर्ण चिंतन वैकल्पिक विचारों और देशज परम्पराओं से ओतप्रोत है, हमें आवश्यकता है कि हम उसका अवगाहन करें और आचरण में उतारें।
Additional information
Authors | |
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ISBN | |
Binding | Paperback |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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