Yakshini

-15%

Yakshini

Yakshini

295.00 250.00

In stock

295.00 250.00

Author: Vinay Kumar

Availability: 5 in stock

Pages: 152

Year: 2021

Binding: Hardbound

ISBN: 9789388753890

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

यक्षिणी

ऐसा कहते हैं हठयोगी और युंग भी कि आदमी का वजूद, उसकी स्मृतियाँ, ख़ासकर जातीय स्मृतियाँ, एक परतदार शिला की तरह उसके अवचेतन के मुँह पर सदियों पड़ी रहती हैं। फिर अचानक कोई ऐसा क्षण आता है कि शिला दरकती है, हहाता हुआ कुछ उमड़ आता है बाहर और कूल-कछार तोड़ता हुआ सारा आगत-विगत बहा ले जाता है। शेष रहता है एक संदीप्त वर्तमान और उस पर पाँव और चित्त टिकाकर कोई खड़ा रह गया तो उसकी बूँद समुद्र हो जाती है यानी अगाध हो जाती है उसकी चेतना। मैं का जानूँ राम को नैना कभी न दीठ भाव से मैंने तो बस पढ़ा-लिखा, सुना-गुना समेट दिया, जो मेरी समझ में आया, उसे एक रूपक दिया, पर यक्षिणी पढ़कर ऐसा लगता है कि अपने डॉ. विनय सचमुच ही प्रत्यभिज्ञा के किसी विराट एहसास से गुज़रे हैं। जिन बारह आर्किटाइपों की बात युंग कहते हैं–योद्धा, प्रेमी, संन्यासी, सेवा-निपुण, अभियानी, जादूगर, विदूषक, नियोजक, द्रष्टा, भोला-भंडारी, विद्रोही वग़ैरह, उनमें इनका वाला आर्किटाइप प्रेमी-संन्यासी-विद्रोही–तीनों की मिट्टी मिलाकर बना होगा जैसा कि सर्जकों का अक्सर होता है। एक क्षीण कथा-वृत्त के सहारे तीन मुख्य किरदार कौंधते हैं–रानी, उसकी अनुचरी यक्षी और वह शिल्पी जो आया तो था रानी का उद्यान तरह-तरह की मूर्तियों से सजाने पर यक्षी की छवि उसके भीतर के पानियों में उसके जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे ऐसी उतरी कि सबसे बड़ी शिला पर उसी की मूर्ति उत्कीर्ण हो गई।

ईर्ष्या-दग्ध रानी की तलवार उसका एक हाथ काट तो गई पर फिर सदियों बाद जब भग्न मूर्ति के आश्रय उसकी स्मृतियाँ जगीं तो उमड़ पड़ा पचासी बन्दों का सजग आत्म-निवेदन। इसकी सान्‍द्रता, त्वरा और चित्रात्मकता डी.एच. लॉरेन्स के मैन-वुमन-कॉस्मॉस वाले उस अभंग गुरुत्वाकर्षण की याद दिला देती है जिसका आवेग हिन्दी की कुछ और लम्बी कविताओं में कल-कल छल-छल करके बहता दिखाई देता है (जैसे कि उर्वशी, कनुप्रिया, मगध, बाघ आदि में)।

अनामिका

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2021

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Yakshini”

You've just added this product to the cart:

error: Content is protected !!