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Description
ज़िद्दी
उपन्यास एक दुःखान्त प्रेम कहानी है जो हमारी सामाजिक संरचना से जुड़े अनेक अहम सवालों का अपने भीतर अहाता किये हुए है। प्रेम सम्बन्ध और सामाजिक हैसियत के अन्तर्विरोध पर गाहे-बगाहे बहुत कथा-कहानियाँ लिखी जाती रही हैं लेकिन ‘ज़िद्दी’ उपन्यास इनसे अलग विशिष्टता रखता है। यह उपन्यास हरिजन प्रेम का पाखंड करने वाले राजा साहब का पर्दाफ़ाश भी करता है, साथ ही औरत पर औरत के ज़ुल्म की दास्तान भी सुनाता है।
‘ज़िद्दी’ उपन्यास के केन्द्र में दो पात्र हैं-पूरन और आशा। पूरन एक अर्द्ध-सामन्तीय परिवेश में पला-बढ़ा नौज़वान है जिसे बचपन से ही वर्गीय श्रेष्ठता बोध का पाठ पढ़ाया गया है। कथाकार ने पूरन के चरित्र का विकास ठीक इसके विपरीत दिशा में किया है। उसमें तथाकथित राजसी वैभव से मुक्त अपने स्वतन्त्र व्यक्तित्व के निर्माण की ज़िद है और वह एक ज़िद्दी की तरह अपने आचरण को ढाल लेता है। आशा उसके खानदान की खिलाई (बच्चों को खिलाने वाली स्त्री) की बेटी है। नौकरानी आशा के लाज भरे सौन्दर्य पर पूरन आसक्त हो जाता है। वर्गीय हैसियत का अन्तर इस प्रेम को एक त्रासदी में बदल देता है। पूरन की ज़िद उसे मृत्यु की ओर धकेलती है। पारिवारिक दबाववश उसका विवाह शान्ता के साथ हो जाता है और इस तरह दो स्त्रियों-आशा और शान्ता का जीवन एक साथ उजड़ जाता है। यहीं इस्मत चुग़ताई स्त्री के सुखों और दुःखों को पुरुष से अलग करके बताती हैं, “मगर औरत ? वो कितनी मुख्तलिफ़ होती है। उसका दिल हर वक़्त सहमा हुआ रहता है। हँसती है तो डर के, मुस्कुराती है तो झिझक कर।” दोनों स्त्रियाँ इसी नैतिक संकोच की बलि चढ़ती हैं।
‘ज़िद्दी’ के रूप में पूरन के व्यक्तित्व को बड़े ही कौशल के साथ उभारा गया है। इसके अलावा भोला की ताई, चमकी, रंजी आदि घर के नौकरों और नौकरानियों की संक्षिप्त उपस्थिति भी हमें प्रभावित करती है। इस्मत अपने बातूनीपन और विनोदप्रियता के लहजे के सहारे चरित्रों में ऐसे खूबसूरत रंग भरती हैं कि वे सजीव हो उठते हैं। एक दुःखान्त उपन्यास में भोला की ताई जैसे हँसोड़ और चिड़चिड़े पात्र की सृष्टि कोई बड़ा कथाकार ही कर सकता है। छोटे चरित्रों को प्रभावशाली बनाना एक मुश्किल काम है।
‘ज़िद्दी’ उपन्यास में इस्मत का उद्धत अभिव्यक्ति और व्यंग्य का लहजा बदस्तूर देखा जा सकता है। बयान के ऐसे बहुत से ढंग और मुहावरे उन्होंने अपने कथात्मक गद्य में सुरक्षित कर लिये हैं जो अब देखे-सुने नहीं जाते। इस उपन्यास में ऐसी कामयाब पठनीयता है कि हिन्दी पाठक इसे एक ही बार में पढ़ने का आनन्द उठाना चाहेंगे।
– जानकी प्रसाद शर्मा
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2005 |
Pulisher |
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