अप्रैल, 1961 में जन्मे अजय सोडानी का मन रमण में रमता है। उनका प्रबल विश्वास है कि इतिहास की पोथियों से गुम देश की आत्मा दन्तकथाओं एवं जनश्रुतियों में बसती है। लोककथाओं से वाबस्ता सौंधी महक से मदहोश अजय अपनी जीवन-संगिनी के संग देश के दूर-दराज़ इलाकों में भटका करते हैं। बहुधा पैदल। यदा-कदा सडक़ मार्ग से। अक्सर बीहड़, जंगल तथा नक्शों पर ढूँढे नहीं मिलने वाली मानव बस्तियों में। उनको तलाश है विकास के जलजले से अनछुए लोकों में पुरा-कथाओं के चिह्नों की। इसी गरज़ के चलते वे तकरीबन दो दशकों से साल-दर-साल हिमालय के दुर्गम स्थानों की यात्राएँ कर रहे हैं।
अब तक प्रकाशित : एक कथा संग्रह अवाक् आतंकवादी; दो यात्रा-आख्यान दर्रा-दर्रा हिमालय व दरकते हिमालय पर दर-ब-दर; मिर्गी रोग को लेकर एक लम्बी कहानी टेक मी आऊट फॉर डिनर टु नाइट। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली से न्यूरोलॉजी विषय में दीक्षित अजय सोडानी वर्तमान में सेम्स मेडिकल कॉलेज, इन्दौर के तंत्रिका-तंत्र विभाग में प्रोफेसर हैं।
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