Bibhutibhushan Bandyopadhyaya

Bibhutibhushan Bandyopadhyaya

विभूतिभूषण वंद्योपाध्याय

बाङ्ला के अमर कथाशिल्पी विभूतिभूषण वंद्योपाध्याय (1894-1950) का नाम भारतीय कथा-साहित्य में एक उज्ज्वल नक्षत्र की तरह है। उनका जन्म मुरारिपुर (बंगाल) में एक ग़रीब परिवार में हुआ था। उन्होंने आरंभिक पढ़ाई अपने गाँव और फिर वनग्राम नामक क़स्बे में पाई। इसके बाद की स्कूली और कॉलेज की पढ़ाई कलकत्ता में पूरी की तथा बी.ए. उपाधि प्राप्त कर जंगीपाड़ा, हुगली में स्कूल शिक्षक बने। कुछेक वर्षों तक सरकारी महकमों में भी नौकरी की। वे फिर शिक्षा जगत में लौट आए और आजीवन लेखन-कार्य से जुड़े रहे। मानवीय मूल्य, शोषितों के प्रति सहानुभूति और सहज कथा-शैली के लिए विख्यात विभूति बाबू ने अपनी रचनाओं द्वारा बहुत बड़ा पाठक समाज तैयार किया। सभी आयु वर्गों और पीढ़ियों के लिए वे सर्वमान्य लेखक के रूप में समादृत हुए। पथेर पांचाली; अपराजिता, अपूरसंसार आरण्यक; मेघ मल्हार, आदर्श हिंदू होटल; इच्छामती और अनुवर्तन उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। सत्यजित राय पथेर पांचाली पर अपनी पहली फ़िल्म बनाकर ही पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुए थे। उनकी अन्य रचनाओं पर भी फ़िल्में बनीं और नाट्य-रूपांतर हुए। अंग्रेज़ी समेत कई भारतीय भाषाओं में उनकी कृतियाँ अनूदित हो चुकी हैं।

हंसकुमार तिवारी (जन्म : 1918) प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनकी साहित्यिक साधना की प्रथम उपलब्धि कला नामक पुस्तक का प्रकाशन सन्‌ 1938 में हुआ था। तिवारी जी स्वतंत्र लेखक के साथ-साथ एक सफल पत्रकार तथा संपादक भी रहे। सन्‌ 1951 में वे बिहार सरकार के राजभाषा पदाधिकारी नियुक्त हुए तथा इसी पद पर कार्य करते हुए उन्होंने अवकाश ग्रहण किया। कविता, कहानी और आलोचना की विधाओं में सक्रिय रहे श्री तिवारी ने बड़ी संख्या में बाङ्ला कृतियों के उत्कृष्ट अनुवाद द्वारा हिंदी साहित्य भंडार को समृद्ध किया।

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