कवि, कथाकार, नाटककार, आलोचक एवं अनुवादक बुद्धदेव बसु (1908-1974) ने चालीस वर्षों से ज़्यादा समय तक रचनारत रहकर न सिर्फ़ बांग्ला साहित्य में एक नयी दृष्टि का सूत्रपात्र किया बल्कि देश-विदेश में भारतीय साहित्य की मौलिक व्याख्या कर इस क्षेत्र में नयी अवधारणाएँ प्रस्तुत कीं। वे ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने तुलनात्मक साहित्य की ज़रूरत सबसे पहले महसूस की और बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय में सन् 1956 में इस विषय का नया विभाग स्थापित किया। भारतीय साहित्य के अध्यापन के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों के आमन्त्रण पर उन्हें प्रायः बाहर जाना पड़ता था। भारतीय साहित्य की बारीकियों से उन्होंने पश्चिमी समाज को परिचित कराकर उनकी रुचि जाग्रत की। महाभारत पर आधारित नाटक ‘तपस्वी और तरंगिनी’ के लिए 1967 में उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 1970 में वे भारत सरकार द्वारा ‘पद्मविभूषण’ अलंकरण से भी सम्मानित हुए।
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