कृष्ण कुमार कश्यप को सन 1963 में फीस ना भर पाने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया था। उस समय वे 14 साल के थे। तब उन्होंने अपनी माँ को भूमि पर अरिपन बनाते देखा व समझ गए कि मिथिला के पारंपरिक चित्र मूल ज्यामितिक चिन्ह हैं जो आपस में मिलकर चित्र और अक्षर दोनों बनाते हैं। उन्होंने गरीब निरक्षरों को चित्रों के माध्यम से निशुल्क पढ़ाने का कार्य शुरू किया। सन् 1981 में गोदना-शैली को मुख्य विषय बना कर ‘भारती विकास मंच’ नाम से संस्था ने काम आरंभ किया, जहाँ लोककला, शिक्षा व उससे आय के गुर सिखाए जाते हैं।
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