Maithlisharan Gupt

Maithlisharan Gupt

मैथिलीशरण गुप्त

जन्म: 3 अगस्त, 1886 (चिरगांव, झांसी) के एक संपन्न वैश्य परिवार में। पूरी स्कूली शिक्षा नहीं। स्वतंत्र रूप से हिंदी, संस्कृत और बांग्ला भाषा एवं साहित्य का ज्ञान। मुंशी अजमेरी के कारण संगीत की ओर भी आकृष्ट।

काव्य-रचना का आरंभ ब्रजभाषा में उपनाम ‘रसिछेंद’ 1905 में ‘सरस्वती’ में छपने के बाद से महावीरप्रसाद द्विवेदी के प्रभाव से खड़ीबोली में काव्य-रचना। द्विवेदी-मंडल के नियमित सदस्य। अपनी कृतियों से खड़ीबोली को काव्य-माध्यम के रूप में स्वीकृति दिलाने में सफल। 1909 में पहली काव्य-कृति ‘रंग में भंग’ का प्रकाशन। तत्पश्चात् ‘जयद्रथ-वध’ और ‘भारत भारती’ के प्रकाशन से लोकप्रियता में भारी वृद्धि। 1930 में महात्मा गांधी द्वारा ‘राष्ट्रकवि’ की अभिधा प्रदत्त, जिसे संपूर्ण राष्ट्र द्वारा मान्यता।

कालजयी कृतियाँ: ‘जयद्रथ-वध’, ‘भारत-भारती’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘मंगल-घर’ और ‘विष्णु प्रिया’। गुप्तजी ने बांग्ला से मुख्यतः माइकेल मधुसूदन दत्त की काव्य कृतियाँ ‘विरहिणी वजांगना’, ‘वीरांगना’ और ‘मेघनाद-वध’ का पद्यानुवाद भी किया है। संस्कृत से भास के अनेक नाटकों का भी अनुवाद। उत्कृष्ट गद्य-लेखक भी, जिसका प्रपाण ‘श्रद्धांजलि और संस्करण’ नामक पुस्तक।

भारतीय राष्ट्रीय जागरण और आधुनिक चेतना के महान् कवि के रूप में मान्य। खड़ीबोली में काव्य-रचना के ऐतिहासिक पुरस्कर्ता ही नहीं, साहित्यिक प्रतिमान भी।

संपादित पुस्तकें: ‘असंकलित कविताएँ: निराला’, ‘निराला रचनावली (आठ खंड)’, ‘रुद्र समग्र’, रामगोपाल शर्मा ‘रुद्र’ की प्रतिनिधि कविताएँ, ‘हर अक्षर है टुकड़ा दिल का’, ‘काव्य समग्र: रामजीवन शर्मा ‘जीवन’, ‘मैं पढ़ा जा चुका पत्र: पत्र-संग्रह’, ‘रामावतार शर्मा: प्रतिनिधि संकलन’, ‘अंधेरे में ध्वनियों के बुलबुले: वैशाली जनपद के कवियों की कविताओं का संकलन’, ‘अंत-अनंत: निराला की सौ चुनी हुई सरल कविताएँ’, ‘कामायनी-परिशीलन: ‘कामायानी’ पर चुने हुए हिंदी के श्रेष्ठ निबंध’, ‘मुक्तिबोध: कवि-छवि: मुक्तिबोध पर चुने हुए हिंदी के श्रेष्ठ निबंध’, ‘निराला: कवि-छवि: निराला पर चुने हुए हिंदी के श्रेष्ठ निबंध’, ‘काव्य समग्र: राम इकबाल सिंह ‘राकेश’

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