मूल रूप से बंगाल की लेकिन जन्मस्थान और निश्चित जन्मतिथि अज्ञात। बाद में वाराणसी में निवास। यह स्पष्ट नहीं है कि वाराणसी कब आईं। सम्भवतः बाल विधवा होने के कई वर्षों बाद यहाँ आईं या लाई गईं और परिस्थितिवश यहीं रह गईं।
वाराणसी में ही अनुमानतः 1873 या इससे कुछ वर्ष पहले अपने समवयस्क भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से सम्पर्क हुआ। फिर उनके बीच प्रेम सम्बन्ध बना जिसका गहरा प्रभाव दोनों के रचनात्मक जीवन पर पड़ा। भारतेन्दु के असमय निधन के कुछेक वर्षों बाद निराधार होकर वाराणसी से वृन्दावन जाने को विवश हुईं। इसके बाद उनके बारे में कुछ पता नहीं चला।
उनकी कृतियों में राधारानी, सौन्दर्यमयी, पूर्णप्रकाश चन्द्रप्रभा, पारस्य, कुमुदिनी तथा निराभिमानदानी उपन्यास प्रमुख हैं। गीत और लेख भी लिखे। रहस्य चन्द्रिका नामक पत्रिका का सम्पादन और मल्लिका चन्द्र एंड कम्पनी का संचालन भी किया।
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