जम्मू (Jammu) के पुरमंडल गांव में 17 अप्रैल 1940 में उनका जन्म हुआ था। 1947 में भारत के विभाजन में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। उस समय उनकी उम्र 7-8 साल की रही होगी। संस्कृत के विद्वान जयदेव बादु की तीन संतानों में सबसे बड़ी पद्मा सचदेव ने डोगरी कवयित्री के रूप में ख्याति प्राप्त की।
कम उम्र में ही पिता को खोने वाली पद्मा सचदेव का बचपन संघर्षों के बीच बीता। उन्होंने पिता को खोने का दर्द, बचपन के संघर्षों और अपने जीवन के सफर के बारे में आत्मकथा ‘बूंद बावड़ी’ में लिखा है।
पद्मा सचदेव को उनकी कृति ‘मेरी कविता मेरे गीत’ के लिए 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
डोगरी भाषा की पहली आधुनिक कवयित्री पद्मा सचदेव 4 अगस्त 2021 को निधन हो गया।
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