Ramesh Kuntal Megh

Ramesh Kuntal Megh

रमेश कुंतल मेघ

रमेश कुंतल मेघ पचहत्तर पार। जाति-धर्म-प्रान्त से मुक्त। देश-विदेश के चौदह-सोलह शहरों के वसनीक यायावर। भौतिक-गणित-रसायन शास्त्र त्रयी में बी.एस.सी. (इलाहाबाद), फिर साहित्य में पी-एच.डी. (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी)। अध्यापन : बिहार यूनिवर्सिटी (आरा), पंजाब यूनिवर्सिटी (चंडीगढ़), गुरुनानकदेव यूनिवर्सिटी (अमृतसर), यूनिवर्सिटी ऑफ आरकंसास पाइनब्लक (अमेरिका)। कार्ल मार्क्स के ध्यान-शिष्य, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अकिंचन शिष्य। सौन्दर्यबोध शास्त्र, देहभाषा, मिथक आलेखकार, समाजवैज्ञानिक वैश्विक दृष्टिकोण के विनायक – अनुगामी, आलोचिन्तक।

इस ‘विश्वमिथकसरित्सागर’ नामक प्रथम हंसगान के सहवर्तन में ‘मानवदेह और हमारी देहभाषाएँ’ नामक दूसरा ग्रन्थ 2015 में ही प्रकाश्य। अथच अनन्त काल तथा विपुल पृथ्वी वाले भवभूति-सिन्ड्रोम के अनागत प्रीत और कीर्ति के आवरण झिलमिलाता हुआ…आहिस्ता…आहिस्ता…आहिस्ता ! बस इतना ही : हुजश्र, प्रियवर, हमराही, सनम, जानमेन, हीरामन, नीलतारा… मेरे सलाम कुबूल करो !!

स्थायी पता : फ्लैट सं.-3 (भू-तल), स्वास्तिक विहार, फेज-3 मनसादेवी काम्प्लेक्स, पंचकूला-134109 (हरियाणा)

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