Ramkumar Bhramar
रामकुमार भ्रमर
रामकुमार भ्रमर का जन्म ग्वालियर (मध्यप्रदेश) में 2 फरवरी, 1938 को हुआ। वह हिंदी के उन गिने-चुने लेखकों में माने जाते हैं, जिनकी प्रखर राष्ट्रवादी दृष्टि में भारतीय समाज और संस्कृति के अंतर-बाह्य संबंधों, विविध पक्षों और उसके आधुनिक मूल्यों को व्याख्यायित करने की अपार क्षमता रही है। साहित्य की सभी विधाओं में श्री भ्रमर ने विपुल लेखन किया, किंतु उपन्यासकार के नाते हिंदी में उनकी अत्यधिक चर्चा हुई। अब तक प्रकाशित उनकी कृतियों के भंडार में उपन्यासों की संख्या ही लगभग 50 के पास है। श्री भ्रमर हिंदी के उन कृतिकारों में से हैं, जिनकी कृतियाँ उनकी युवावस्था में ही विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाई जाती रहीं और जिन पर बहुत कम आयु में ही अनेक शोध-निबंध लिखे गए तथा छात्रों ने डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
लेखकीय जीवनारंभ में रामकुमार भ्रमर ने पत्रकारिता की व 1969 से हिंदी में स्वतंत्र लेखक के नाते प्रतिष्ठित रहे। उन्होंने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर भी अनेक लेख व पुस्तकों की रचना की। अनेक केंद्रीय और राज्य पुरस्कारों से सम्मानित रहे भ्रमरजी को उत्तरप्रदेश शासन द्वारा दो बार ‘अखिल भारतीय प्रेमचंद पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उनकी अनेक कृतियों के भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुए। श्रीकृष्ण के जीवन पर लिखे उनके उपन्यास पर आधारित बैले के रूस में सैकड़ों प्रदर्शन हो चुके हैं। उनकी अनेक कहानियों और उपन्यासों पर फिल्में व टेलीविजन धारावाहिक प्रसारित हो चुके हैं।
बहमुखी प्रतिभा के धनी रामकुमार भ्रमर अपनी सादगी और विनम्रता के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध रहे। कठोर जीवन-संघर्षों के बीच अपने राष्ट्रीय विचारों और समाज-चिंतन के लिए समर्पित रामकुमार भ्रमर की सतत साहित्य-साधना उन कलाकारों के लिए एक सबक है, जो सुख-सुविधाओं और सत्ता-लोभ की लिप्सा में उलझकर अपना कलात्मक अस्तित्व खो बैठते हैं।
स्मृति-शेष – 29 मई, 1998