बिहार के दरभंगा जिले के तरौनी गाँव में 14 जून, 1945 को जन्मे शोभाकान्त बाबा नागार्जुन के ज्येष्ठ पुत्र हैं और नागार्जुन की अनथक यात्रा के आखिरी कुछ वर्षों के हमराही भी। ज्ञानेन्द्रपति के शब्दों में कहें, तो ‘कवि नागार्जुन उर्फ यात्री के पुत्र ही नहीं मित्र/ अपने बाधित पैरों में अबाध अगाध यात्रोत्साह लिए/दुबले तन में जठर ही नहीं, किसी दावा का भी दाह लिए’। मैथिली और हिन्दी में समान रूप से लिखते रहे हैं। मैथिली और बांग्ला में कुछ अनुवाद भी किया है। दर्जनों निबन्ध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं। 1980 के दशक से नागार्जुन की जहाँ-तहाँ बिखरी रचनाओं के संकलन-सम्पादन में लीन। नागार्जुन की ‘भूमिजा’ और ‘पका है यह कटहल’ जैसी किताबों के सह-सम्पादक। ‘नागार्जुन—मेरे बाबूजी’ पुस्तक से खासा चर्चित हुए। ‘नागार्जुन : चयनित निबन्ध’, ‘नागार्जुन रचनावली’ और ‘यात्री समग्र’ का सम्पादन किया है। नागार्जुन के साहित्य-संसार के अनछुए पहलू को सामने लाने के लिए आज भी प्रत्यनशील हैं।
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