Sunayan Sharma

Sunayan Sharma

सुनयन शर्मा

भारतीय वन सेवा के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने 1986-88 में मरु क्षेत्र के वन्यजीवों की सुरक्षा व प्रबन्ध हेतु वन्यजीव प्रतिपालक के रूप में सेवाएँ दीं। वर्ष 1988-91 में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर में अनुसंधान अधिकारी के रूप में एवं पुनः 2006-08 में इसके निदेशक के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। अपने इस दूसरे कार्यकाल में उन्होंने विलायती बबूल (प्रोसोपिस ज्यूलीफ्लोरा) के राष्ट्रीय उद्यान से उन्मूलन के लिए एक विशिष्ट मौलिक योजना का सृजन किया। उन्होंने चिकसाना कैनाल व गोवर्धन ड्रेन का पानी भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान में पहुँचाने वाली दो महत्वपूर्ण योजनाओं को जन्म दिया। यह तीनों योजनाएँ केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को (UNESCO) द्वारा प्रदत्त विश्व प्रकृति निधि के गौरवशाली अलंकरण को बचाए रखने में मील का पत्थर साबित हुईं। वर्ष 1991-96 में श्री शर्मा, सरिस्का बाघ परियोजना के क्षेत्र निदेशक रहे। पुनः उन्होंने 2008-10 में सरिस्का में अपनी सेवाएँ दीं। सरिस्का में चल रही सैकड़ों संगमरमर की खानें बन्द करवाने में उन्होंने प्रशंसनीय भूमिका अदा की। शिकारियों के हाथों बाघों का सफाया होने के बाद सरिस्का में बाघों को पुर्नवासित करने में मुख्य भूमिका निभाई। यह विश्व में अपने किस्म का पहला ही प्रयोग था। उन्होंने वन्यजीवों की सुरक्षा व संवर्द्धन के लिए अनेकों अनूठी योजनाएँ सृजित कीं। सुनयन शर्मा वर्तमान में सरिस्का टाइगर फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं।

You've just added this product to the cart:

error: Content is protected !!