प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी को मुशायरों की कामयाबी की जमानत माना जाता है। वसीम बरेलवी के गीत, ग़ज़ल और दोहे हिन्दी-उर्दू के सभी काव्य-प्रेमियों व श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। वसीम बरेलवी अमीर खुसरो, कबीर, रसखान, जायसी और रहीम की परम्परा के शायर हैं। वसीम बरेलवी का जन्म 18 फरवरी 1940 को अपने ननिहाल बरेली में हुआ था।
आपका मूल नाम ज़ाहिद हसन वसीम आपके पूर्वज मुरादाबाद में नवाबपुर में ज़मीदार थे। आपने बरेली कालेज से उर्दू में एम.ए. रूहेलखंड विश्व विद्यालय में सर्वश्रेष्ठ (टॉप) छात्र के रूप में की। तत्पश्चात् बरेली कालेज में उर्दू के प्रोफ़ेसर रहे और रुहेलखण्ड विश्व विद्यालय में फैकल्टी ऑफ़ आर्ट के डीन के पद से सेवानिवृत्त हुए। ‘‘खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है मैं वह कतरा हूँ समंदर मेरे घर आता है’’
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