- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
आलोचक का आकाश
लेखन की शुरुआत कहानी से करने वाले मधुरेश की आलोचना में एक विशिष्ट पहचान है। ‘आलोचक का आकाश’ उनकी ऐसी संस्मरणात्मक कृति है जिसमें वह आत्ममुग्धता से तो बचे ही हैं, उस परिवेश को भी उन्होंने बखूबी पकड़ा है, जिसमें वे जिए–बढ़े।
उनका यह कथन महत्त्वपूर्ण है कि जिया गया परिवेश कभी पूरी तरह से नहीं मिट पाता। वह उस परिवेश को जीने वाले व्यक्ति के अंदर जीवित रहता है। यह भी सच है कि इन स्मृतियों में उतरना और उन्हें कागज पर उतारना किसी बीहड़ यात्रा से कम नहीं है। इस अपनी जी हुई दुनिया में मधुरेशजी पूरे मन से उतरे हैं और खोज–खोजकर पुरानी चीजें निकाल कर ले आए हैं।
यह एक ऐसी सम्मोहक यात्रा है जिसमें उनके साथ पाठकों को भी अद्भुत आनंद का अनुभव होगा। यह एक अनूठी संस्मरण–यात्रा इसलिए भी है कि यहां व्यक्ति राम प्रकाश शंखधर ही नहीं, उसका वह पूरा समय, समाज और आत्मीयजन भी पूरी आत्मीयता के साथ कथा का हिस्सा बन चुके हैं।
मधुरेशजी के शब्दों में यह उस समय व समाज का पुनराविष्कार है, इसे पढ़ते हुए रसवान पाठकों को रचनात्मक गद्य का आस्वाद तो मिलेगा ही, वे आलोचक के आकाश से भी प्रामाणिक रूप में जुड़ सकेंगे।
हिन्दी गद्य को समृद्ध करने वाली इस कृति को सुधी पाठक सहेज कर रखना चाहेंगे।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.