Adbhut Dweep

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Author: J.R. Wiss Translated Srikant Vyas

Availability: 5 in stock

Pages: 80

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788174830197

Language: Hindi

Publisher: Rajpal and Sons

Description

अद्भुत द्वीप

1

हमारा जहाज आस्ट्रेलिया जा रहा था कि अचानक समुद्र में तूफान आ गया। छह दिनों तक हम लोग तूफान का सामना करते रहे, लेकिन सातवें दिन हमारी हालत बहुत खराब हो गई। तूफान इतना तेज था कि जहाज में दो छेद हो गए, जिनके कारण पानी अंदर आने लगा। पाल भी बुरी तरह फट गया। जहाज को संभालने की हमारी सब्र कोशिशें बेकार जा रही थीं। और वह बेकाबू होकर हवा के रुख के साथ भागा जा रहा था। हमें पता नहीं था कि हम कहां पहुंचेंगे।

मेरे चारों बच्चे मारे डर के मुझसे चिपके जा रहे थे। पत्नी की आँखों में आँसू छलछला आए थे। बच्चे चुप और डरे हुए थे। उन्हें हिम्मत बंधाते हुए मैंने कहा, ”देखो, परेशान मत हो, भगवान पर भरोसा करो। वही हम सबकी रक्षा करेंगे। हमें उन्हीं को याद करना चाहिए।” और हम घुटनों के बल झुककर, हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे। प्रार्थना के बाद हमें लगा कि अब हममें ताकत लौट आई है। अब हम हर मुसीबत का सामना कर सकते हैं।

कुछ देर बाद एक बहुत जोर का धक्का-सा लगा, मानो तेज भागता हुआ जहाज किसी चीज से टकरा गया हो। पूरे जहाज में खलबली-सी मच गई। तभी एक आवाज सुनाई पड़ी। आवाज कप्तान की थी, वह कह रहा था, ”जहाज किसी चट्टान से टकरा गया है। जल्दी से सब लोग ‘जीवन नौका’ पर चढ़ जाएं, नहीं तो बचना मुश्किल है।”

यह सुनते ही, जो जहां जिस हाल में था, वैसे ही दौड़ पड़ा। पत्नी और बच्चों के साथ मैं भी भागा, लेकिन मैं जब तक जीवन-नौका तक पहुंचा, उसकी डोरी जहाज से काटी जा चुकी थी। घबराहट में कोई किसी की आवाज नहीं सुन पा रहा था। इसलिए हम लोगों का चिल्लाना और आवाज देना बेकार गया। अब मुझे अपने, अपनी पत्नी और चार बच्चों की रक्षा का उपाय अपने ही दिमाग से निकालना था। मैंने चारों ओर नजर दौड़ाकर देखा। पता चला कि जहाज दो चट्टानों के बीच फंसा हुआ था कि तूफान के थपेड़े अब उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। मैंने सोचा कि किसी तरह रात बिता देनी चाहिए। सुबह कोई उपाय सोचा जाएगा। इतनी खैरियत थी कि जहाज के जिस हिस्से में हम थे, वह साफ बच गया था। उसे कोई औच नहीं आई थी मैंने पत्नी और बच्चों को हिम्मत बंधाते हुए कहा, ”घबराने की कोई बात नहीं है। तूफान शायद सुबह तक थम जाए। तब तक कोई खतरा नहीं है।”

हम सभी दिन-भर के भूखे थे। मैंने पत्नी से खाने का कुछ इन्तजाम करने को कहा। पत्नी डरी हुई थी, लेकिन फिर भी वह चुपचाप उठी और खाने की तैयारी करने लगी। थोड़ी देर बाद खाना तैयार हो गया और हम सब खाने बैठे।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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