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Description
आरण्यक
विभूतिभूषण वंधोपाध्याय का आरण्यक बाङ्ला और भारतीय साहित्य के उन ग्रंथों में है, जो महान् हैं। और इनमें ही क्यों, किसी भी साहित्य में इसकी मर्यादा यही होगी। यह गद्य प्रगीत है, वन की गीति का काव्य। मानव-पुत्रों के वर्धभान कुल-परिवार को जगह देने के लिए अहल्या वनराजि का उच्छेद होता जा रहा है। इसी उच्छेद की पटभूमि पर लेखक ने सहानुभूति के साथ, तथा बरबस लोहा मनवा लेनेवाली सच्चाई के साथ वन एवं आदिम ग्राम के प्रतिवेश में मानव का चित्र अंकित किया है। इस तरह आरण्यक एक ऐसी कविता है, जिसका विषय प्रकृति भी है और मनुष्य भी, और जो दोनों की ही परम मनोहर छवि उपस्थित करती है। इस छवि का आधार ज्ञान एवं सह-संवेदन, दोनों है।
Additional information
| Authors | |
|---|---|
| Binding | Paperback |
| ISBN | |
| Pages | |
| Language | Hindi |
| Publishing Year | 2019 |
| Pulisher |











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