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Description
बन्दी जीवन और अन्य कविताएँ
कई महीनों से इन कविताओं की पाण्डुलिपि मुझे लगातार अपने वादे की याद दिलाती हुई मेरे पास थी कि मुझे भूमिका के रूप में कुछ लिखना है। इस दौरान मैंने कई विषयों पर लिखा है, लेकिन यह भूमिका लिखना मेरे लिए अजीब तरह से मुश्किल रहा। मैं कविता का निर्णायक अथवा आलोचक नहीं हूँ, इसलिये कुछ हिचकिचाहट थी। लेकिन मैं कविता से प्यार करता हूँ और इन छोटी कविताओं में से कई ने मुझे बहुत प्रभावित किया। वे मेरी स्मृति में अटक गयीं और उन्होंने मेरे जेल-जीवन की यादें ताज़ा कर दींऔर उस अजीब और भुतही दुनिया की भी, जिसमें समाज द्वारा अपराधी मानकर बहिष्कृत लोग अपनी तंग और सीमित ज़िन्दगी को प्यार करते थे। वहाँ हत्यारे थे, डाकू और चोर भी थे, लेकिन हम सब जेल की उस दुःखभरी दुनिया में साथ-साथ थे, हमारे बीच एक जज़्बाती रिश्ता था।
अपनी एकाकी कोठरियों में ही हम चहलकदमी करते – पाँच नपे-तुले कदम इस तरफ और पाँच नपे-तुले कदम वापस, और दुःख से संवाद करते रहते। दोस्त-अहबाब और आसरा ख्यालों में ही मिलता और कल्पना के जादुई कालीन पर ही हम अपने माहौल से उड़ पाते। हम दोहरी ज़िन्दगी जी रहे थे – जेल की ज़ेरेहुक्म और तंग, बन्द और वर्जित ज़िन्दगी और जज़्बात की, अपने सपनों और कल्पनाओं, उम्मीदों और अरमानों की आज़ाद दुनिया। उन सपनों का बहुत-सा इन कविताओं में है, उस ललक का जब बाँहें उसके लिये फैलती हैं जो नहीं है और एक खालीपन हाथ आता है। कुछ वह शान्ति और तसल्ली जिन्हें हम उस दुःखभरी दुनिया में भी किसी तरह पा लेते थे। कल की उम्मीद हमेशा थी, कल जो शायद हमें आज़ादी दे। इसलिये मैं इन कविताओं को पढ़ने की सलाह देता हूँ और शायद वे मेरी ही तरह दूसरों को भी प्रभावित करेंगी।
– जवाहरलाल नेहरू
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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