Bhakti Andolan Aur Surdas Ka Kavya
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भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य
सूर का काव्य हिंदी जाति के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास से दिलचस्पी रखने वालों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उनकी कविता में उस युग के यथार्थ और इतिहास का जो कलात्मक पुनःसृजन है, उसका बार-बार अनुभव संभव है; इसलिए वह अपने युग की ऐतिहासिक सीमाओं से मुक्त भी है। समाज के इतिहास को बार-बार जीना संभव नहीं होता, लेकिन कलाकृति में पुनर्रचित इतिहास का बार-बार अनुभव करना संभव होता है। सूर की कविता मानवीय अनुभवों की विविधता का अक्षय भंडार है। एक युग के मनुष्य के अनुभवों की दुनिया में दूसरे युग के मनुष्य की दिलचस्पी स्वाभाविक है, यह मनुष्यता के विकास के इतिहास में मनुष्य की दिलचस्पी है। आज और कल के मनुष्य के लिए सूर की कविता की सार्थकता का एक पक्ष यह भी है। कला में मनुष्य के अनुभव के वैयक्तिक, सामाजिक और मानवीय-तीनों ही पक्ष होते हैं। कला में मनुष्य के अनुभव के वैयक्तिक और सामाजिक पक्ष कई बार ऐतिहासिकता की सीमाओं में बंधे होने के कारण परवर्ती काल में सीमित सार्थकता रख पाते हैं, लेकिन अनुभव का मानवीय पक्ष हर युग के मनुष्य की मनुष्यता से जुड़कर अपनी सार्थकता पा लेता है। सूर की कविता में मानवीय संवेदनशीलता के ये तीनों ही पक्ष है; इसलिए सूर की कविता का अनुभव युगीन है और युगातीत भी। यही कारण है कि सूर की कविता कालबद्ध है और कालजयी भी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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