Bharat ke Bhawanon Ki Kahani

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Bharat ke Bhawanon Ki Kahani

Bharat ke Bhawanon Ki Kahani

90.00 76.00

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Author: Bhagwatsharan Upadhyay

Availability: 5 in stock

Pages: 64

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788170284673

Language: Hindi

Publisher: Rajpal and Sons

Description

भारत के भवन

भारत एक महान् देश है, जिसके संबंध में परिचय देने वाली यह पुस्तकमाला भारत के सभी पक्षों का पूरा विवरण देती है। प्रत्येक पृष्ठ पर दो रंग में कलापूर्ण चित्र, सुगम भाषा और प्रामाणिक तथ्य। इस पुस्तकमाला के लेखक हैं, प्रसिद्ध साहित्यकार, इतिहास और कला के मर्मज्ञ डॉ. भगवतशरण उपाध्याय।

भारत के भवन

भारत के भवन दुनिया भर में अपनी तरह के अनूठे तो हैं ही, इनकी निर्माण कला और शैली भी दुनिया के सभी देशों से भिन्न है। अन्य देशों में प्रायः उसी एक शैली के भवन प्राप्त होते हैं, जिसकी संस्कृति का उस देश में प्रभुत्व रहा। जैसे यूरोप के सभी देशों में ईसाई धर्म ही प्रचलित रहा इसलिए उसी से प्रभावित शैलियों के ही भवन प्राप्त होते हैं। इटली और ग्रीस ही इसके अपवाद रहे क्योंकि इन देशों में ईसाइयों के प्रवेश से पूर्व ग्रीक और रोमन सभ्यताओं का प्रभाव था और उस समय निर्मित कुछ भवन, काफी कुछ टूट-फूट जाने पर भी, आज भी उपलब्ध हैं। इसी प्रकार चीन और जापान में उन्हीं की तिरछी छतदार शैलियों के भवन उपलब्ध हैं, अथवा अरब देशों में मुस्लिम मीनार शैली के भवन दिखाई देते हैं।

परन्तु भारत में आरम्भ से ही कई धर्म सभ्यताओं की शैलियाँ कार्यरत रहीं। कुछ तो, जैसे इस्लामी तथा ईसाई, बाहर से आईं, और कुछ भारतीय संस्कृति की विविध धार्मिक धाराओं की अपनी एक दूसरे से बिल्कुल अलग-अलग शैलियाँ थीं। इनमें प्राचीन हिन्दू, दक्षिण भारतीय हिन्दू तथा बौद्ध और जैन शैलियाँ हैं जो एक दूसरे से नितान्त भिन्न प्रकार की हैं।

बिलकुल प्राचीन सिन्धु धाटी सभ्यता के नगर पंजाब से राजस्थान और गुजरात के समुद्र तट तक फैले हुए हैं। इनमें हड़प्पा और मोहनजोदड़ों तो अब पाकिस्तान में चले गए हैं, परन्तु गुजरात के कालीबंगन, लोथल इत्यादि भारत में ही हैं। इनकी खुदाइयों से अनेक परिणाम सामने आ रहे हैं। एकदम नयी खोजों से द्वारिका के परे समुद्र के भीतर भी नगर के खण्डहर प्राप्त हो रहे हैं, जो पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण के समय में ही समुद्र में डूब गया बताया जाता है।

हिन्दू परम्परा में उत्तर तथा दक्षिण के भवन और मन्दिर एक दूसरे से बिलकुल भिन्न प्रकार के हैं, भले ही दोनों प्रदेशों के धर्म एक ही रहे हों। मुसलमानों से युद्ध होते रहने के कारण उत्तर भारत में मन्दिरों का इतना विकास नहीं हो पाया जितना शान्ति बनी रहने के कारण दक्षिण भारत में हुआ। दक्षिण मन्दिरों के शिखर अपनी तरह के अनोखे हैं और अनेक मन्दिर तो पूरे-पूरे शहर ही हैं। बौद्ध शैली में चैत्य और स्तूपों के अलावा पहाड़ काटकर बनाई गई गुफाओं का जिनमें भीतर चित्र, मूर्तियाँ इत्यादि बनाए गए विकास हुआ, जैसे दुनिया में कहीं और नहीं हुआ। अलबत्ता, चीन में भारत अनुकरण पर क्योंकि वहाँ बौद्ध धर्म भारत से गया और फैला, कुछ स्थानों पर गुफा मन्दिर अवश्य बनाए गए। जैन मन्दिरों का शिल्प मोटे तौर पर हिन्दू शिल्प से मिलता-जुलता होने के बावजूद, इससे भिन्न रहा। दिलवाड़ा तथा माउण्ट आबू के मन्दिर तथा दक्षिण में गोमतेश्वर की अति विशाल नग्न मूर्ति इसके प्रमाण हैं।

यही नहीं, भारतीय भवन निर्माण कला का एक स्वतन्त्र शास्त्र भी यहाँ विकसित किया गया, जिसे वास्तुशास्त्र कहते हैं। इसमें मनुष्य के रहने वाले घरों, पूजा पाठ के स्थानों तथा व्यापार के लिए निर्मित भवनों, सभी को दिशाओं, ऋतुओं और नियति से जिस प्रकार जोड़ा गया, वह आश्चर्यजनक है। आज इस शास्त्र का एक बार फिर प्रचार हो रहा है और स्वयं भारत के अलावा अमेरिका इत्यादि पश्चिमी देश भी इससे लाभ उठाने का प्रयत्न कर रहे हैं।

मुसलमानों ने भारत आकर अपने ढंग के अलग किले, मस्जिदें इत्यादि बनाईं। इनमें मनुष्य के चित्र तथा प्रतिमा को स्थान नहीं था, इसलिए बेलबूटे और पच्चीकारी में इसने विशेषता हासिल की। कुरान शरीफ की आयतें इतनी कलापूर्वक लिखी गईं कि आश्चर्य होता है। दिल्ली का लाल किला, जामा मस्जिद और आगरे का किला तथा ताजमहल इसके उदाहरण हैं।

फिर अंग्रेजों के भारत आगमन के साथ ईसाई धर्म आया और इनके द्वारा निर्मित भवनों पर दोनों के संयुक्त प्रभाव पड़े। जहाँ एक ओर कुछ बड़े भव्य गिरजाघर बने, वहाँ अंग्रेजों ने जो इमारतें बनवाईं, वे भी अपनी तरह की अनूठी रहीं। मुम्बई और कोलकाता चूँकि अंग्रेजों ने ही बसाए इसलिए इनके भवन इनकी कला के अद्भुत नमूने बने। मुम्बई में विक्टोरिया टर्मिनस और फोर्ट का सारा इलाका ऐसे भवनों से भरा हुआ है। इसी प्रकार कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल ब्रिटिश कला का अनुपम उदाहरण है।

बीसवीं शताब्दी के आरंभ में आधुनिक भवन निर्माण कला जब प्रचार में आई तब राजधानी नई दिल्ली के वे अनेक भवन बने जो इस शैली के बेजोड़ नमूने हैं। इनमें कनाट प्लेस का गोलाई में बना मार्केट संसद का गोल भवन, सैकड़ों कमरों वाला विशाल राष्ट्रपति भवन और उसके सामने इण्डिया गेट का विस्तार, इत्यादि अत्यन्त प्रभावशाली तथा दर्शनीय हैं।

इस प्रकार भारत के भवनों में शैली तथा शिल्प की जो विविधता है वह अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं है। इन्हीं का एक संक्षिप्त विवरण यह पुस्तक प्रस्तुत करती है।

अनुक्रम

       ताजमहल

       आगरे का किला

       फतहपुर सीकरी

       कुतुबमीनार

       जामा मस्जिद

       लाल किला

       दिलवाड़ा

       उड़ीसा के मन्दिर

       भरहुत और सांची

★       दक्‍कन के गुफा-मन्दिर

★       दक़्कन के मन्दिर

★       मदुरै

★       विक्टोरिया मेमोरियल

★       राष्ट्रपति भवन

★       संसद भवन

★       गोलघर

★       उपसंहार

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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