Bharatiya Sangeet Ki Kahani

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Bharatiya Sangeet Ki Kahani

Bharatiya Sangeet Ki Kahani

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Author: Bhagwatsharan Upadhyay

Availability: 5 in stock

Pages: 72

Year: 2014

Binding: Paperback

ISBN: 9788170284116

Language: Hindi

Publisher: Rajpal and Sons

Description

भारतीय संगीत की कहानी

अनुक्रम

       संगीत की कहानी

       शास्त्रीय संगीत

       देशी संगीत

       भक्ति संगीत

       लोक गीत

       वाद्य संगीत

       नृत्य

       फिल्‍मी संगीत

       संगीत के घराने

       उपसंहार

 

संगीत की कहानी

गाने, बजाने और नृत्य को संगीत कहते हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना प्रायः इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा, इसमें संदेह नहीं।

आदमी के विकास, और विचार पर अध्ययन करने वाले विद्वानों और चिन्तकों का तो विश्वास है कि मनुष्य ने बोलना सीखने से भी पहले नाचने का अभ्यास कर लिया था। स्पष्ट है कि नृत्य या नाचने में कण्ठ और बोलने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसमें बोलना या गाना सीखने या विकसित करने में जितना समय लगा होगा उसकी आवश्यकता नृत्य के विकास में नहीं पड़ी होगी। आनन्द के क्षणों में आदमी स्वाभाविक ही थिरक पड़ा होगा और धीरे-धीरे आनन्द-प्राप्ति का स्रोत बन गया होगा।

गाने का सम्बन्ध कण्ड और स्वर से है। गाने के पहले बोल सकना अनिवार्य था। बोलना, अच्छी प्रकार बोलना और तब स्वर को हवा पर लहरा कर भी एक प्रकार के सुख का अनुभव करना बाद की बात थी। जो भी हो, जिस रूप में हम गायन को आज जानते हैं, स्वयं उसका आरम्भ भी आज से कई हज़ारों साल पहले हो गया होगा। वैदिक काल में तो यह पूर्णतया विकसित हो गया था। सामवेद इसका प्रमाण है।

बाजा-बजाना बेशक गाने और नाचने के बाद की ही चीज़ है और उसका विकास हुआ भी उसके बाद ही, पर उसका आरम्भ भी कुछ हाल का नहीं हैं- बीसियों हज़ार वर्ष पुरानी बात है। संसार की प्राचीन से प्राचीन खोजी-खोदी हुई सभ्यता में बाजा किसी-न-किसी रूप में मिला है। इससे उसकी प्राचीनता प्रमाणित होती है।

हमारे देश में शिव और पार्वती का सम्बन्ध संगीत के आरंभ से जोड़ा जाता है। शिव और पार्वती भावमय गान और नृत्य करते हैं। विशेषकर शिव को वाद्य और नृत्य के अधिक समीप माना गया है। पार्वती के वाद्य-नृत्य की बात कहीं नहीं आती। शिव के एक हाथ में डमरू का होना बाजे की प्राचीनता भी सिद्ध करता है। आनन्द के उल्लास में शिव नाच उठते हैं। इस प्रकार कि शिव-पार्वती की अनेक मूर्तियां हमारे संग्रहालयों में भरी पड़ी हैं।

दक्षिण भारत की, नटराज शिव की मूर्तियाँ तो अत्यन्त सुन्दर और दर्शनीय हैं। उसे ताण्डव नृत्य कहा गया है। नीचे पड़े हुए काल और देश के परे की शिव की जो कल्पना की गई है, काल-पुरुष के तन पर शिव का नाचना उसके अनुकूल ही है। शिव का नृत्य इस प्रकार काल को लाँघ जाता है।

केवल आनन्द से गाने, नाच उठने और बजाने की प्रथा चाहे जितनी पुरानी हो पर उनका कला के रूप में विकास इतना पुराना नहीं, केवल कुछ हजार वर्षों का ही है। और आनन्द और उल्लास की बहती हुई धारा को कला की ऊँचाई या स्तर तक पहुँचने में समय लगता है, बड़ी साधना की आवश्यकता होती है। दिन-रात के निरंतर अभ्यास से कला सधती और सीमाओं में बँधती है। तभी उसका सही विस्तार विकास हो पाता है, वरना भला लहराते और थिरकते पैरों को कोई क्या बाँध पाता !

पर इनको सीमा और परिधि में बाँध देना ही कला है। जब हम एक राग-स्वर को बार-बार एक ही रूप में एक ही ताल विस्तार में गाते हैं, तब उस राग या स्वर की संज्ञा ‘कला’ होती है। एकाएक गा उठना मानव की प्रवृत्ति है। सभ्य मानव उसी को, अभ्यास से कला के रूप में विकसित कर लेता है।

यही बात नृत्य के सम्बन्ध में भी सही है। जब प्रसन्न वन-मानव अपने अभ्यास और साधना में विभोर अपने पैरों में गति भर लाता है, थिरक उठता है, तब वह नृत्य का आरम्भ करता है। पर नत्य को अपने अभ्यास, और साधना से कला की संज्ञा सभ्य मानव ही देता है। बहती हुई धारा को सीमाओं में बाँधकर उसे बार-बार इच्छानुसार एक ही रूप में उतार लेना ही कला है।

इस दृष्टि से हम आगे गायन, वादन और नर्तन-गाना, बजाना और नाचना-पर कला के रूप में विचार करेंगे। ये तीनों एक साथ भी साधे जाते हैं, स्वतन्त्र रूप से अलग-अलग भी। हम यहाँ उन पर अलग-अलग ही विचार करेंगे, और चूँकि गाना और बजाना एक दूसरे से अधिक निकट हैं, अधिक लोकप्रिय भी हैं अतः हम पहले उन्हीं की चर्चा करेंगे।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2014

Pulisher

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