Chandan Kiwad
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Description
चन्दन किवाड़
यह जो आपके हाथ में है, एक किताब नहीं, मेरे मन का प्रवाह है, अपने आस-पास के परिवेश के देखे, जिए, अनुभूत लोकचित्र हैं, लोक से प्रेरित अभिव्यक्ति है, लोक है, यानी आप सभी का है। यह हर उस घर के किरदार हैं, जहाँ लोकसंस्कृति की संवेदना है, जहाँ सामाजिक चिन्तन के सजग प्रहरी हैं। यह जीवन व्यवहार से अपने संगीत को समर्पण है। यह चन्दन का किवाड़, दरअसल लोक का किवाड़ है, जो अपनी सुवास से चन्दन की सुगन्ध लिए हुए परम्परा में हज़ारों साल से स्त्रियों के सजल कण्ठ को भरोसा और विश्वास दिलाये रखता है। इसके दरवाज़े पर मैं, संगीत में सखी-भाव से खड़ी हूँ और शायद अपनी साधना और शिक्षा से अनन्त काल तक खड़ी रहने की कामना करती हूँ। ‘गुइयाँ दरवजवा मैं ठाढ़ी रहूँ’ भैरवी राग की एक पारम्परिक ठुमरी है, जिसे सदा सुहागिन राग कहा जाता है और इस राग को गायन में पूर्णता या शिखर पर उपस्थित होने की मान्यता प्राप्त है। इसीलिए, पुस्तक के शीर्षक में इसे साभिप्राय लिया है, जिसकी आकांक्षा में भी पूर्णता और सदा सुहागन स्त्री की तरह मंगल कामना का भाव निहित है।
— मेरी बात
★★★
‘चन्दन किवाड़’! कितना सुन्दर नाम है। जैसे हमारी गंगा-जमुना से आती चन्दन की वही सुगन्ध जिसे मालिनी अवस्थी अपनी गायकी से देस परदेस में बिखेरती रहती हैं। दरअसल वे गाती नहीं, बल्कि उसे हर सम्भव जतन से जीती हैं। इन्होंने जीवन के जितने रंग देखें हैं, अभी तक उन्हें अपने संगीत में गाकर व्यक्त करती आयी हैं, अब उन्हीं भावों को किताब के रूप में लेकर आयी हैं। जीवन के अनुभवों के अनमोल मोतियों को क़रीब से देखना- समझना हो तो आपको यह किताब पढ़नी चाहिए। यह किताब नहीं, एक कलाकार की अभिव्यक्ति है; जीवन की सुन्दर दस्तावेज़ है चन्दन किवाड़। मेरा आशीर्वाद सदा उनके साथ है!
— पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया
★★★
मेरी छोटी बहन श्रीमती मालिनी अवस्थी जी के गाने में इस समय गुरु की कृपा बरस रही है। हृदय को अपने गुरु और कला को समर्पित करके पूरी सच्चाई और ईमानदारी से गाने की मिसाल हैं मालिनी जी। शब्दों को जीना और अपने हर कार्यक्रम को एक यादगार पल बना देना मालिनी जी की विशेषता है, और अब ये विशेषता इस किताब चन्दन किवाड़ में एक संस्कार के स्वरूप में, उनके स्वर्णिम अक्षरों में भींज का मेरे हृदय की नज़र से एक ऐतिहासिक ग्रन्थ बन गयी है।
मेरी बहुत-बहुत शुभकामना और आशीर्वाद मालिनी जी को समर्पित है। और आप ऐसे ही हमारी संस्कृति को आगे बढ़ायें, इसे और चमत्कृत करें।
सहृदय !
— पण्डित साजन मिश्र
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2025 |
Pulisher |
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