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Description
चौदह फेरे
चौदह फेरे लेनेवाली कर्नल पिता की पुत्री अहल्या जन्म लेती है अल्मोड़े में, शिक्षा पाती है ऊटी के कान्वेन्ट में, और रहती है पिता की मुँहलगी मल्लिका की छाया में। और एक दिन निर्वासित, हिमालय में तपस्यारत माता के प्रबल संस्कारों से बँध सहसा ही विवाह के दो दिन पूर्व वह भाग जाती है, कुमाऊँ अंचल में।
समूचा उपन्यास विविध प्राणवान् चरित्रों, समाज, स्थान तथा परिस्थितियों के बदलते हुए जीवन मूल्यों के बीच से गुजरता है।
आदि से अन्त तक भरपूर रोचक तथा अविस्मरणीय।
शिवानी
यों तो एक कहानी लेखिका के रूप में शिवानी ने कई वर्ष पहले मेरा ध्यान आकर्षित किया था, लेकिन मुझे बराबर यह अनुभव होता था कि उन्हें आगे चल कर उपन्यास लिखने चाहिए। कहानियों में जिस तरह से सजीव चित्रण के उभारती थीं, उनकी सही जगह उपन्यासों में थी, ऐसा मेरा विश्वास था। उनकी हर कहानी एक विशेष मोड़ तक जाकर रुक जातीं थी और मैं सोचा करता था कि इसके आगे भी बहुत-कुछ होना चाहिए।
इसलिए जब ‘धर्मयुग’ में ‘चौदह फेरे’ धारावाहिक छपने लगा तो मुझे एक आन्तरिक प्रसन्नता हुई, केवल इसलिए नहीं कि मेरा सोचा हुआ सम्भव हुआ बल्कि इसलिए भी कि मुझे एक अच्छा उपन्यास पढ़ने के लिए मिलने लगा। धारावाहिक छपनेवाले उपन्यास पढ़ने में मुझे बड़ी उलझन होती है। एक बैठक में पुस्तक खत्म कर देने की मेरी पुरानी आदत बीच में ही टूट जानेवाली धारावाहिक की धारा से सन्तुष्ट नहीं होती। इसलिए ऐसे उपन्यास पढ़ने का मैं प्रयत्न ही नहीं करता। लेकिन ‘चौदह फेरे’ के साथ मैं ऐसा नहीं कर सका। इसके बाद भी उनके कई उपन्यास धारावाहिक छपने तक मेरे भीतर का रस-स्त्रोत ही छीज गया हो लेकिन मेरे मन में अब भी यह बात जमी हुई है कि शिवानी के ‘चौदह फेरे’ में दूध-जैसी ताज़गी थी, वह बाद के उपन्याओं की प्रौढ़ता और चिन्तन के चलते कुछ उपेक्षित-सी हो गयी। इसके मतलब यह भी नहीं है कि समय के चलते लेखक में आनेवाले प्रौढ़ता कोई अनावश्यक तत्त्व है। शिवानी ने इधर अपना लेखनीय व्यक्तित्व विकसित किया है और सौभाग्य से उन्हें अपने समकालीन लेखकों की तुलना में कहीं अधिक पाठक मिले हैं।
वे एक सफल लेखिका हैं और उनकी रचनाओं की ओर पाठकों की दृष्टि लगी रहती है। मैंने अभी-अभी उनकी लगभग सभी रचनाएँ एक बार फिर पढ़ी और मैं यह विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि वे अपने ऊपर चारों ओर से पड़ रहे प्रकाश-बिम्बों से एक हद तक विचलित पर काफी हद तक सजग है। लेखक के जीवन में ऐसे क्षण बहुत महत्त्वपूर्ण होते है जब उसकी रचना सही माने में प्रकाश में आती है। यह एक प्रसन्नता की घड़ी होती है लेकिन प्रसन्नता का आवेग शीघ्र ही एक अदृश्य आशंका का स्थान ले लेता है और लेखक धीरे-धीरे स्वयं के प्रति सजग होने लगते है। यह सजगता कभी-कभी लेखक के भीतर की अजान परतें तोड़ती है और उसे अनथाही गहराइयों की ओर जाने को बाध्य करती है। लेखक के लिए यह एक अच्छी बात है, लेकिन अक्सर ऐसा भी हुआ है कि प्रसिद्ध और प्रशंसा लेखक को विजड़ित या स्तम्भित कर देती हैं। ‘चौदह फेरे’ के प्रकाशन के बाद के वर्षों में शिवानी ने जो कुछ लिखा है, वह एक लेखक के इसी दुरूह संघर्ष का प्रतिफल है।
‘चौदह फेरे’ के कथानक की उन्मुक्त सादगी और कौशल की पहाड़ी चित्रकला-जैसी चटख रंगीन अब भी शिवानी की सबसे बड़ी शक्ति है। अपने नवीनतम उपन्यास ‘भैरवी’ तक में उन्होंने वातावरण बनाने और रूप-चित्रण करने में अपनी ‘चौदह फेरे’ की कारीगरी सुरक्षित रखी; लेकिन आलोचकों ने इसी बीच उनकी इसी कुशलता पर उँगली उठानी शुरू कर दी है। ये इसे दुहराव कहते हैं और लेखिका की सबसे बड़ी कमजोरी मानते हैं। मैं आलोचकों के मत के विरुद्ध या पक्ष में कुछ नहीं कहना चाहता लेकिन उनसे इतना अवश्य पूछूँगा कि वे लेखकों की भीड़ में से एक विशेष-लेखन को अलग से किस तरह पहचानते हैं। वे शायद शैली की विशिष्टता की बात कहें या इससे मिलती-जुलती और कुछ बातें, लेकिन मुझे विश्वास है कि इस प्रश्न का उत्तर देते-देते शिवानी पर लगाये गये अपने आरोपों का खण्डन वे अपने-आप ही कर देंगे। सम्पूर्ण संस्कृति वाड़्मय में बाणभट्ट की कादम्बरी का छोटे-से-छोटा अंश भी अलग से पहचाना जा सकता है, वैसे ही जैसे आप हिन्दी गद्य लेखकों की भीड़ में श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी या उनके स्तर के शैलीकारों को अलग से पहचान लेते है। शिवानी के सम्बन्ध में भी यह बात बिना हिचक के कही जा सकती है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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