Desh Ki Hatya

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Desh Ki Hatya

Desh Ki Hatya

200.00 190.00

In stock

200.00 190.00

Author: Gurudutt

Availability: 4 in stock

Pages: 264

Year: 2022

Binding: Hardbound

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

देश की हत्या

भूमिका

‘देश की हत्या’ 1947 में जो देश-विभाजन हुआ, उसकी पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास है। इस प्रकार भारतवर्ष में गांधी-युग की पृष्ठभूमि पर लिखे अपने उपन्यासों की श्रृंखला में यह अन्तिम कड़ी है। ‘स्वाधीनता के पथ पर’, ‘पथिक’, ‘स्वराज्य-दान’ और ‘विश्वासघात’ पहले ही पाठकों के सम्मुख आ चुके हैं। उसी क्रम में इस उपन्यास को लिखकर देश के इतिहास को इस युग के अन्त तक लिख दिया गया है।

इन उपन्यासों में उस युग की सम्पूर्ण घटनाओं को नहीं लिखा जा सका। फिर भी, जो-जो ऐतिहासिक तथ्य लिखे हैं, वे सब सत्य हैं। तत्कालीन इतिहास के साथ-साथ ही ये उपन्यास चलते हैं। उपन्यास विवेचनात्मक हैं और विवेचना अपनी है। कोई अन्य व्यक्ति इन्हीं ऐतिहासिक घटनाओं के अर्थ भिन्न ढंग से भी लगा सकता है। इन अर्थों का विश्लेषण पाठक स्वयं करने का यत्न करें, तो ठीक रहेगा।

इन सब उपन्यासों को क्रमानुसार पढ़ने से कुछ पाठकों को ऐसा भास हुआ है कि लेखक के विचार बदल गए हैं। इस कारण ‘स्वाधीनता के पथ पर’ के गांधीवाद का प्रशंसक ‘देश की हत्या’ में गांधीवाद का निन्दक हो गया प्रतीत होता है। किन्तु ऐसा नहीं है। लेखक ने इतिहास के तारतम्य को ज्यों-का-त्यों रखते हुए, उसके जनता पर प्रभाव को निष्पक्ष भाव से अंकित करते हुए अपने मन पर उत्पन्न हुए भावों को भी लिखा है। यह यत्न किया गया है कि गांधीवाद के समर्थकों का दृष्टिकोण भी यथासम्भव रख दिया जाए। अतएव विचारों में विषमता भासित हो सकती है; वास्तव में ऐसा नहीं है।

राष्ट्र किसी देश के उन नागरिकों के समूह को कहते हैं, जो देश के हित में अपना हित समझते हैं। कभी-कभी देश में ऐसा समूह बहुत छोटा रह जाता है। वे लोग, जो अपने निजी स्वार्थ को सर्वोपरि मानते हैं, बहुत भारी संख्या में उत्पन्न हो जाते हैं, तब देश को हानि पहुँचती है और देश पराधीनता की श्रृंखलाओं में बँध जाता है। राष्ट्र की उन्नति अर्थात् देश में ऐसे लोगों की संख्या में वृद्धि होना, जो देश के सामूहिक हित को व्यक्ति के हितों से ऊपर समझते हैं, अत्यावश्यक है। इसी देश में सुख-शान्ति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है।

महात्मा गांधी जी की हिन्दू-मुस्लिम एकता की विधि दूषित थी और उक्त लक्ष्य के विरुद्ध बैठी थी। उसका परिणाम 1946-47 के प्रचण्ड हत्याकाण्डों में प्रकट हुआ और अन्त में देश-विभाजन हुआ, जिसके दुःखद परिणाम होने की सम्भावना तब तक बनी रहेगी, जब तक यह विभाजन स्थिर रहेगा। जब-जब भी देश का द्वार गांधार तथा कामभोज (सिन्धु पार का सीमा प्रदेश और अफगानिस्तान) देश के हितेच्छुओं के हाथ में रहा है, तब ही देश सुरक्षित और शान्तिमय रह सका है। जिस राजा अथवा सम्राट ने इस तथ्य को समझा है, उसे अपना अधिकार दो प्रदेशों पर रखने का यत्न किया है। 1919 से 1947 तक की कांग्रेस-नीति ने दोनों प्रदेश भारत के हित के विपरीत जाति के हाथों में दे दिए हैं। उसी नीति से अब कश्मीर को उन लोगों के हाथों में देने का प्रयोजन किया जा रहा है, जो देश के हित का चिन्तन भी नहीं कर सकते। इस दूषित नीति का स्पष्टीकरण ही ‘विश्वासघात’ और ‘देश की हत्या’ में करने का यत्न किया गया है।

यह सम्भव है कि जनता के कुछ लोग लेखक के परिणामों को स्वीकर न करते हों। इसी कारण इन पुस्तकों का लिखना आवश्यक हो गया है। स्वराज्य-प्राप्ति के पश्चात् भारत के शासक-दल ने घटनाओं को विकृत करने, उन घटनाओं में अपने उत्तरदायित्व को दूसरों के गले मढ़ने और घटनाओं को छिपाने का यत्न आरम्भ कर दिया है, इस कारण भी यह दूसरा दृष्टिकोण उपस्थित करना आवश्यक हो गया है।

देश-विभाजन ठीक नहीं माना जा सकता। परन्तु यह क्यों हुआ, किसने किया और कैसे इसको मिटाया जा सकता है ? ये प्रश्न देश के सम्मुख हैं और तब तक रहेंगे, जब तक यह मिट नहीं जाता। सामयिक चिन्ताओं में ग्रस्त लोग भले ही नाक की नोक के आगे न देख सकें, परन्तु दूर-दृष्टि रखने वाले तो इन प्रश्नों पर विचार करेंगे ही। उनको रोकना असम्भव है।

1947 की भयंकर घटनाओं की पृष्ठभूमि पर आधारित यह उपन्यास ऐतिहासिक व्यक्तियों तथा तथ्यों को छोड़, मुख्यतया काल्पनिक ही है। इसके लिए घटनाओं का ज्ञान अनेकानेक निर्वासित भाइयों के वक्तव्यों, समय के समाचार-पत्रों तथा श्री गोपालदास की खोसला की ‘स्टर्न रैकनिंग’ और श्री अमरनाथ बाली की ‘नो इट कैन बी टोल्ड’ नामक अंग्रेजी की पुस्तकों के आधार पर संचित किया गया है।

तदपि है तो यह उपन्यास ही।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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