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Hindi Bhasha Aur Sahitya Ka Itihas
₹499.00 ₹425.00
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Author: Sanjay Singh Baghel
Pages: 606
Year: 2020
Binding: Paperback
ISBN: 9789389915334
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास
डॉ. संजय सिंह बघेल की पुस्तक ‘हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास’ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिहाज़ से एक संग्रहणीय पुस्तक है। दो भागों में विभाजित यह पुस्तक हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास को समेकित रूप से सम्प्रेषणीय भाषा में अभिव्यक्त करती है। सिविल सेवा और राज्य सेवाओं के लिए हिन्दी विषय के पाठ्यक्रम पर आधारित एक स्वतः सम्पूर्ण किताब का अभाव लम्बे समय से महसूस किया जा रहा था।
यह किताब निश्चय ही इस कमी को पूरा करने का एक सार्थक प्रयास है। लेखक और प्रकाशक को इसके लिए मैं साधुवाद देता हूँ। अभय कुमार ठाकुर (आई.आर.एस.) आयकर आयुक्त एवं वित्त अधिकारी (प्रतिनियुक्ति पर) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।
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Publishing Year | 2020 |
संजय सिंह बघेल
संजय सिंह बघेल वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन। मुख्य विषय मीडिया, सोशल मीडिया और विज्ञापन हैं। इसके अलावा मोटिवेशनल स्टोरी लिखना और व्याख्यान देना भी इनकी रुचि मं शामिल है। अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें अंग्रेज़ी में Advertising and Social Media Status in Middle East (From Germany), Social Media and Indian Youths तथा हिन्दी में विज्ञापन और ब्रांड, मीडिया का बाजारीकरण और भारतीय लोकतन्त्र, संचार, समाज और साहित्य, प्रायोगिक हिन्दी, प्रकाश की चाह प्रमुख हैं। आपको विज्ञापन और ब्रांड पुस्तक के लिए भारत के राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।
Raju Ranjan Prasad –
2020 में वाणी प्रकाशन से छपी संजय सिंह बघेल की किताब ‘हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास’ है। इसमें ‘हलंत चिह्न’ का उल्लेख है। कहना अनावश्यक है कि हिंदी के अधिकतर स्वयंभू विद्वान ‘हल’ (ल हलयुक्त) और ‘हलंत’ का भेद नहीं समझते। जो खुद को वैयाकरण समझते हैं वे भी भूल कर बैठते हैं। कारण महज यह है कि हम शब्दों के बारे में ठहरकर विचार करना छोड़ चुके हैं। जब हम चिह्न की बात करें तो ‘हल’ शब्द का प्रयोग करें। ‘हलंत’ का मतलब हुआ ‘हल’ चिह्न के साथ अंत होनेवाले वर्ण या अक्षर। ‘हलंत’ वर्ण या अक्षर हो सकते हैं न कि चिह्न। चिह्न तो ‘हल’ ही होगा
दरअसल यह हल संस्कृत से आया है। संस्कृत में स्वर को ‘अच्’ और व्यंजन को ‘हल’ (ल हलयुक्त) कहा जाता है। व्यंजन में स्वर मिले रहते हैं, उनके बगैर व्यंजन वर्ण का स्पष्ट उच्चारण नहीं हो सकता। उनको अलग करने के लिए हल (हिन्दी में तिरछी रेखा) का प्रयोग किया जाता है।