Hindi Cinema ke Bahurang

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Hindi Cinema ke Bahurang

Hindi Cinema ke Bahurang

400.00 320.00

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400.00 320.00

Author: Munish Sharma

Availability: 5 in stock

Pages: 184

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9788179653241

Language: Hindi

Publisher: Taxshila Prakashan

Description

हिंदी सिनेमा के बहुरंग

आज हिंदी सिनेमा अपनी धुन और बिकने-बिकाने की कांइयां और घाटे का सौदा ना करने वाली मारवाड़ी वृत्ति के उस मुकाम तक पहुंच चुका है, जहां उसने अपने उस उद्देश्य को पा लिया जो उसे चाहिए था। जिसमें दर्शक के लिए सिनेमा न होकर सिनेमा के लिए दर्शक तैयार करने का व्यापारिक मैनेजमेंट लेकर फिल्मों को बनाना एक मात्र गोल है। हिंदी की त्रासदी यही रही कि उसमें सिनेमा जीत गया और समाज की मौत हो गई। हिंदी फिल्मों का जनक माने जाने वाले दादा साहब फाल्के ने ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ पहली बोलती फिल्म बनाई। बात यह नहीं है कि सत्य हरिश्चन्द्र सदा हमारे जीवन के लिए मानक बने रहेंगे। बदलाव बुरा नहीं होता मगर केवल तरकीयत याकि ऊपरी बदलाव से हकीकत को नहीं बदला जा सकता। इस हिंदी सिनेमा ने मानसिक रूप से कमजोर समाज के साथ वैसा ही सुलूक किया जैसा कि कोई शातिर किसी गांव की भोली भाली युवती के साथ बहला फुसलाकर उसका बलात्कार करता है। और उस बलात्कार के बाद वह युवती ताउम्र नित नये रूप में समाज से बलात्कार करवाते रहने के लिए मजबूर हो जाती है। वह चाहकर भी उस अपनी न की गई भूल का पश्चाताप नहीं कर पाती। विदेशी सिनेमा की हमारे जैसा देश होड़ नहीं कर सकता। उस सिनेमा को यह कहकर खारिज नहीं किया जा सकता कि पाश्चात्य संस्कृति हमसे कमतर है। मसला पूरे वृत के चारों ओर देखने का है। पश्चिमी देशों में सदा से एक जुझारू प्रयोगधर्मिता और सत्य के अन्वेषण की वृत्ति रही है। शोध और अनुसंधान उनकी कार्यपद्धति के अनिवार्य अंग रहे हैं। फिल्‍म जैसी विधा के प्रति भी उनका नजरिया यथार्थपरक और प्रयोगधर्मी बना रहा, इसी कारण वह अपने देश, समाज और व्यक्ति के सूक्ष्म अछूते गहन उतार-चढ़ावों, अंधेरों तक पहुंच पाए। मगर हिंदी सिनेमा की मक्कारी यही रही कि उसने पाश्वात्य सिनेमा से उसकी तकनीक तो ले ली मगर उस जज्बें का वह अनुगमन नहीं कर पाया जो उसे ‘ऑस्कर’ के लायक बनाता है।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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