Jung Andhvishwaso Ki

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Jung Andhvishwaso Ki

Jung Andhvishwaso Ki

299.00 229.00

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299.00 229.00

Author: Narendra Dabholkar

Availability: 5 in stock

Pages: 310

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9789389598476

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

जंग अंधविश्वासों की
कुशेरा के नेत्रोपचार करनेवाले गुरव बंधु हों, निःसंतानों को संतान प्रदान करानेवाली पार्वती माँ हों, या एक ही प्रयास में व्यसनमुक्त करानेवाले शेषराव महाराज हों, थोड़ा-सा विचार करें, तो समझ में आता है कि लोग असहाय होते हैं। अतः वे दैववादी बनते हैं। इसी से अंधविश्वास का जन्म होता है। समाज जागरूक नहीं है। लोग अविवेकी, व्याकुल हैं, यह बिल्कुल सच है; लेकिन क्या लोगों की इस कमजोरी का इस्तेमाल उनकी लूट करने के लिए किया जाए ? क्या लोगों की पीड़ा से अपनी झोली भरी जाए ? लोग श्रद्धा रखते हैं, देवाचार माननेवाले हैं, इसका यह मतलब नहीं कि लोग मूर्ख हैं और इसी कारण वे श्रद्धा, देवाचार, नैतिकता, पवित्रता आदि से संबंधित बंधनों का पालन करते हैं। हम देवताओं की ओर जाते हैं, वह चमत्कार के डर से नहीं बल्कि प्रेमभाव के कारण होता है। लेकिन प्रेम में भय और दहशत का कोई स्थान नहीं है।

इस श्रद्धा में जो चीजें गैरजरूरी और अतार्किक हैं, उनका परीक्षण क्यों न किया जाए ? कालबाह्य मूल्यों के प्रभावहीन होने से तथा नवविचारों के प्रभावी व्यवहार से लोग परिवर्तन चाहते हैं। हम जब ऐसा कहते हैं कि हिंदू धर्म की बुनियादी मूल्य-व्यवस्था ही असमानता पर आधारित है, तो वास्तव में यह विधान भूतकाल को संबोधित करके किया गया होता है। जन्म से जातीय वरीयता का पुनरुज्जीवन आज कोई नहीं चाहता। प्रत्येक धर्म में मूल नीति तत्त्व बहुतांश रूप में समान हैं। प्रखर नास्तिक भी इसे स्वीकार करेगा। धर्म जब कर्मकांड भर रह जाता है, तब उसका विकृतिकरण होता है। क्या चमत्कार धर्मश्रद्धा का हिस्सा है ?

स्वामी विवेकानंद कहते हैं, ‘‘जिस शुद्ध हिंदू धर्म का सम्मान मैं करता हूँ, वह चमत्कार पर आधारित नहीं है। चमत्कार एवं गूढ़ता के पीछे मत पड़ो। चमत्कार सत्य-प्राप्ति के मार्ग में आनेवाला सबसे बड़ा रोड़ा है। चमत्कारों का पागलपन हमें नादान और कमजोर बनाता है।’’

इसी वैचारिक पृष्ठभूमि में ‘महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ विगत 24 वर्षों से कार्यरत है। अपने निःस्वार्थ कार्यकर्ताओं के साथ उसने इस दौरान अनेक बार आंदोलन किए हैं, अनेक बार अपनी जान जोखिम में डालकर और अपनी जेब से पैसा खर्च करके समाज में चल रहे अंधविश्वासों के व्यापार का विरोध किया है। इस पुस्तक में ऐसे ही कुछ आंदोलनों की रपट है। इन घटनाओं का विवरण पढ़कर पाठक स्वयं ही समझ सकता है कि अंधविश्वासों से यह जंग कितनी खतरनाक लेकिन कितनी जरूरी है।

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Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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