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Description
कगार की आग
घास-फूस के टूटे कच्चे घर ! आकाश की झीनी छत। धरती पर कच्ची मिट्टी की मैली चादर। दो जून रूखी-सूखी मिल पाना भी मुश्किल। मर-मर जीने वालों की वह व्यथा-कथा आज का युग-सत्य भी है, कहीं। बर्फीले पर्वतीन क्षेत्र की इस कथा में एक अंचल विशेष की धरती की धड़कन है, एक जीता-जागता अहसास भी। मोमती, पिरमा, कुन्नू के माध्यम से संत्रस्त मानव-समाज के कई चित्र उजागर हुए हैं। इसलिए यह कुछ लोगों की कहानी, कहीं ‘सबकी कहानी’बन गयी है—देश-काल की परिधि से परे।
Additional information
| Authors | |
|---|---|
| Binding | Paperback |
| ISBN | |
| Language | Hindi |
| Pages | |
| Publishing Year | 2022 |
| Pulisher |











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