Kahni Upkhan
Kahni Upkhan
₹995.00 ₹755.00
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Author: Kashinath Singh
Pages: 396
Year: 2019
Binding: Hardbound
ISBN: 9788126707768
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Description
कहनी उपखान
सुप्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ सिंह पिछले चालीस वर्षों से हिन्दी कथा में सक्रिय और तरो-ताजा हैं। उन्होंने अपने लेखन के जरिए पाठकों की नई जमात तैयार की है युवाओं की जमात अपना मोर्चा लिखकर और साहित्य से कोई सरोकार न रखनेवाले सामान्य पाठकों की संस्मरण और काशी का अस्सी लिखकर। लेकिन ऊपर से आरोप यह कि उन्होंने साहित्य की कुलीनता की धज्जियाँ उड़ाई हैं। इसके एवज में उन्होंने गलियाँ भी खाई हैं, उपेक्षाएँ भी झेली हैं और खतरे भी उठाए हैं। यह यों ही नहीं है कि कथा-कहानी में आनेवाली हर युवा पीढ़ी काशी को अपना समकालीन और सहयात्री समझती रही है। ऐसा क्यों है-यह देखना हो तो कहनी उपखान पढ़ना चाहिए।
कहनी उपखान काशी की सारी छोटी-बड़ी कहानियों का संग्रह है-अब तक की कुल जमा-पूँजी। मात्र चालीस कहानियाँ। देखा जाना चाहिए कि वह कौन-सी खासियत है कि इतनी-सी पूँजी पर काशी लगातार कथा-चर्चा में बने रहे हैं और आलाचकों के लिए भी ‘अपरिहार्य’ रहे हैं। कला और काल से छेड़छाड़ और मुठभेड़-पहचान है काशी की कहानियों की। काल के केन्द्र में हैं सामाजिक और आर्थिक विसंगतियों से घिरा आदमी-कभी अकेले, कभी परिवार में, कभी समाज में। इस आदमी से मिलना यानी कहानियों को पढ़ना हरी-भरी जिन्दगी के बीच चहलकदमी करने जैसा है। न कहीं बोरियत, न एकरसता, न मनहूसियत न दुहराव। उठने-गिरने, चलने-फिरने लड़ने-हारने, में भी हँसी-ठठ्ठा और व्यंग्य-विनोद। जिन्दादिली कहीं भी पाठक का साथ नहीं छोड़ती। जियो हँसते हुए, मरो तो हँसते हुए-यही जैसे जीने का नुस्खा हो पात्रों के जीवन का।
जैसे-जैसे जिन्दगी बदली है, वैसे-वैसे काशी की कहानी भी बदली है-अगर नहीं बदला है तो कहानी कहने का अन्दाज। जातक, पंचतंत्र और लोकप्रचलित कथाशैलियाँ जैसे उनके कहानीकार, के खून में हैं। कई कहानियाँ तो चौपाल या अलाव के गिर्द बैठकर सुनने का सुख देती हैं।
आइए, वह सुख आप भी लीजिए कहनी उपखान पढ़कर। कहनी (कहानी) और उपखान (उपख्यान) कहकर तो काशी ने लिया है, आप भी लीजिए पढ़कर, क्योंकि काशी को पढ़ना ही सुनना है।
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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