Kakad Kissa

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295.00 235.00

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Author: Pradeep Jilwane

Availability: 5 in stock

Pages: 248

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9789391277253

Language: Hindi

Publisher: Setu Prakashan

Description

काकड़ किस्सा

प्रदीप जिलवाने हमारे समय के बेहद भरोसेमन्द युवा कथाकार हैं, जिनके पास पर्याप्त विकसित कथा- कल्प तो है ही, जरूरी कथा-शिल्प भी है। भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन सम्मान सहित कई अन्य महत्त्वपूर्ण सम्मान और पुरस्कार उन्हें हासिल हैं। ‘प्रार्थना समय’ सहित कई महत्त्वपूर्ण किताबें उनकी रचना-यात्रा की विश्वसनीयता पुख्ता करती हैं और इस नये उपन्यास ‘काकड़-किस्सा’ के सन्दर्भ में आश्वस्त भी।

अपने पहले उपन्यास ‘आठवाँ रंग पहाड़-गाथा’ में जहाँ प्रदीप ने हमेशा हाशिये पर रहे आदिवासी जीवन के विद्रूप और संघर्षो को केन्द्र में लाने का प्रयास किया, वहीं इस उपन्यास ‘काकड़-किस्सा’ में वे ऐसे किस्से रचते-बुनते हैं जिनमें वर्तमान भारतीय ग्राम्य जीवन का सहज सौन्दर्य भी है और समकाल का क्रूर यथार्थ भी। युवा लेखक ने इन देहाती किस्सों को जिस खूबी से एक बेहद नायाब प्रेम कहानी के ताने-बाने में बुनकर हमारे समय की दुखती नब्ज पर उँगली रखी है, वही इस उपन्यास का सबसे मजबूत पक्ष है। दरअसल इस बहाने ग्रामीण परिवेश के इस ऊपरी सौन्दर्य पर चुपड़े नकली मेकअप की परत को खुरचने का काम किया गया है।

लेखक की स्थानीय लोकबोली निमाड़ी के शब्द ‘काकड़’ का अर्थ किसी गाँव या इलाके की मानी हुई सरहद होता है।  ‘काकड़-किस्सा’ इस अर्थ में भी अपने समय की रचनात्मकता से थोड़ा भिन्‍न और जोखिम भरा है कि युवा लेखक ने चमक-दमक की सम्भावनाओं से भरे आधुनिक जीवन से इतर और लीक से परे कथा-जीवन को उपन्यास की आधारभूमि बनाया है। यह परिपक्व लेखकीय साहस ही है कि बहुतेरे चरित्रों के बावजूद पूरी कथा-यात्रा सन्तुलन के साथ अपने ध्येय की ओर बढ़ती है और पूरी पठनीयता के साथ खुद को खोलती है।

यह उपन्यास बहुस्तरीय है। यहाँ जीवन प्रसंगों के कई किस्से दाखिल हैं, जो मानवीय संवेदनाओं को स्पर्श करते हुए, बल्कि उन्हीं में से गुजरते हुए हमें हमारे समय की पड़ताल कराते हुए आगे बढ़ते हैं। यहाँ पाताल तक पैर पसार चुका बाजारवाद भी है तो परम्पराओं के नाम पर हो रहा छल-प्रपंच भी, हमारी सामाजिकता की जड़ों तक फैले जातिवाद से उपजा बिखराव भी है, तो वे विकलांग मनोवृत्तियाँ भी हैं जो व्यक्ति की मनुष्यता में बाधक होती हैं।

बहरहाल ‘काकड़-किस्सा’ हमारे समय का वह रोचक आख्यान और कुतर्कों की काट है जिसके किस्सों में इस महादेश का वह असल चेहरा देखा जा सकता है, जिसे तमाम डिजिटल लीपा-पोती भी ढाँक नहीं पा रही।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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