Kake Di Hatti

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Kake Di Hatti

Kake Di Hatti

295.00 250.00

In stock

295.00 250.00

Author: Mamta Kaliya

Availability: 4 in stock

Pages: 160

Year: 2010

Binding: Hardbound

ISBN: 9789350002483

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

काके दी हट्टी

ममता कालिया की कहानियाँ नई कहानी के विस्तार से अधिक उसका प्रतिवाद हैं। सातवें दशक की कहानी में संबंधों से बाहर आने की चेतना स्पष्ट है। राजेन्द्र यादव नई कहानी को ‘संबंध’ को आधार बना कर ही समझने और परिभाषित करने की कोशिश करते हैं। ममता कालिया अपनी पीढ़ी के अन्य कहानीकारों की तरह ही इसे समझने में अधिक समय नहीं लेतीं कि अपने निजी जीवन के सुख-दुख और प्रेम की चुहलों से कहानी को बाँधे रख कर उसे वयस्क नहीं बनाया जा सकता। उनकी कहानियाँ स्त्री-पुरुष संबंधों को पर्याप्त महत्त्व देने पर भी उसी को सब कुछ मानने से इनकार करती हैं। वे समूचे मध्यवर्ग की स्त्री को केन्द्र में रखकर जटिल सामाजिक संरचना में स्त्री की स्थिति और नियति को परिभाषित करती हैं। उनकी स्त्री इसे अच्छी तरह समझती है कि अपनी आज़ादी की लड़ाई को मुल्क की आज़ादी की लड़ाई की तरह ही लड़ना होता है और जिस कीमत पर यह आज़ादी मिलती है, उसी हिसाब से उसकी कद्र की जाती है।

संरचना की दृष्टि से ममता कालिया की ये कहानियाँ उस औपन्यासिक विस्तार से मुक्त हैं जिसके कारण ही कृष्णा सोबती की अनेक कहानियों को आसानी से उपन्यास मान लिया जाता रहा है। काव्य-उपकरणों के उपयोग में भी वे पर्याप्त संयत और संतुलित हैं। वे सीधी, अर्थगर्भी और पारदर्शी भाषा के उपयोग पर बल देती हुई अकारण ब्यौरा और स्फीति से बचती हैं। भारतीय राजनीति में कांग्रेस के वर्चस्व के टूटने और नक्सलवाद जैसी परिघटना का कोई संकेत भले ही ममता कालिया की कहानियों में न मिलता हो, जैसा वह उनके ही अन्य समकालीन अनेक कहानीकारों में आसानी से लक्षित किया जा सकता है, लेकिन फिर भी अपनी प्रकृति में वे नई कहानी की संबंध-आधारित कहानियों की तुलना में कहीं अधिक राजनीतिक हैं। देश में बढ़ी और फैली अराजकता एवं विद्रूपताओं से सबसे अधिक गहराई से स्त्री ही प्रभावित हुई है। यह अकारण नहीं है कि उनकी भाषा में एक खास तरह की तुर्शी है जिसकी मदद से वे सामाजिक विद्रूपताओं पर व्यंग्य का बहुत सधा और सीधा उपयोग करती हैं। नई कहानी के जिन लेखकों को ममता कालिया अपने बहुत निकट और आत्मीय पाती हैं, इसे फिर दोहराया जा सकता है, वे परसाई और अमरकान्त ही हैं।

मधुरेश

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2010

Pulisher

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