Kitne Sharon Mein Kitne Baar

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Kitne Sharon Mein Kitne Baar

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300.00 255.00

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300.00 255.00

Author: Mamta Kaliya

Availability: 4 in stock

Pages: 212

Year: 2010

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126718764

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

कितने शहरों में कितनी बार

‘बेघर’, ‘नरक-दर-नरक’, ‘दौड़’ जैसे अविस्मरणीय उपन्यासों एवं कई उत्कृष्ट कहानियों की रचनाकार ममता कालिया गद्य-लेखन की नई भूमिका में हैं। वे उन शहरों को याद कर रही हैं जहाँ वह रहीं और जहाँ की छवियों को कोई हस्ती मिटा नहीं सकी। जाहिर है कि यह महज याद नहीं है, यह है – जीवन्त गद्य द्वारा अपने ही छिपे हुए जीवन की खोज और उसका उत्सव। इस गद्य-श्रृंखला ने अपनी हर अगली किस्त में ज्यादा पाठक, सम्मान और लोकप्रियता अर्जित की।

‘कितने शहरों में कितनी बार’ ने निश्चय ही हिन्दी गद्य को समृद्धि, गरिमा और ऊँचाई दी है।

– अखिलेश

‘कितने शहरों में कितनी बार’ में दिल्ली को जाना। इसमें रवि सचमुच नायक हैं और आपके लिखने का ढंग इतना नायाब कि उदासी और वियोग की बात आते ही दिल्ली में पीली, मैली धूल उड़ना शुरू हो जाती है – हर चीज को किसकिसा बनाती हुई। इतने शेड्स हैं और जीवन की इतनी तस्वीरें कि यह आपका वृतान्त भर नहीं, हमारे समय की कथा, गल्प और कहानी होने लगती है। मेरे लिए आपकी यह सृजनात्मकता बहुत प्रिय और मूल्यवान सिद्ध हुई है।

– कुमार अम्बुज

आपके संस्मरण ‘कितने शहरों में कितनी बार’ – दिल्ली से पता चला कि रवीन्द्रजी कितने साहसी हैं। ट्रेन के नीचे से अँगूठी उठा लाए। यह पूरी लेखमाला आपकी आत्मकथा बन जाएगी जैसे ‘गालिब छुटी शराब’ है। इन लेखों की रोचकता इनकी सच्चाई में निहित है। इनमें आपका संघर्ष भी भरा हुआ है। बधाई लें।

– सरजूप्रसाद मिश्र

अभी-अभी ‘तद्भव’ में ‘कितने शहरों में कितनी बार’ पढ़कर खत्म किया। आपकी बेबाकी और वह अनायास फक्कड़पन, न केवल जिन्दगी की खानाबदोशी बल्कि उसको उकेरने का ढंग – आपके इस सृजनात्मक रिपोर्ताज ने मेरा मन मोह लिया।

– सुदर्शन प्रियदर्शिनी

‘तद्भव’ के नए अंक में आपका संस्मरणात्मक लेख पढ़ा। आपका लेख अद्भुत है। आपकी शैली और भाषा पूरे समय बाँधे रहती है।

– अनंत विजय

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2010

Pulisher

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