Mantra Mahodadhi

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Mantra Mahodadhi

Mantra Mahodadhi

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Author: Shukdev Chaturvedi

Availability: 5 in stock

Pages: 832

Year: 1981

Binding: Hardbound

ISBN: 0

Language: Sanskrit & Hindi

Publisher: Prachya Prakashan

Description

मंत्र महोदधि

भूमिका

अपनी कामना या अभीष्ट की सिद्धि के प्रमुखतम उपाय को साधना कहते हैं। यह एक क्रियात्मक विज्ञान है, जो साधक को साध्य से मिलाकर उसकी समस्त कामनाओं को परिपूर्ण कर देता है। कवि को कवित्व एवं ऋषि को ऋषित्व साधना के द्वारा हो प्राप्त होता है। अतः साधना सफलता की कुंजी है।

भारत जैसे साधना-प्रधान देश में देहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से छुटकारा पाने के लिए सुदूरतम प्राचीन काल से मन्त्र साधना का आश्रय लिया जाता रहा है। इस साधना के द्वारा न केवल हमारी लौकिक कामनाओं की पूर्ति या लौकिक सिद्धियाँ ही मिलती हैं, अपितु इस साधना के द्वारा दुःखों की आत्यन्तिक निवृत्ति या मुक्ति भी मिलती है। तान्त्रिक सम्प्रदाय के अनुयायियों का विश्वास है कि यह साधना एक हाथ से भुक्ति तथा दूसरे हाथ से मुक्ति प्रदान करती है।

मन्त्र, तन्‍त्र एवं यन्त्र तात्त्विक रूप से भिन्न वस्तु नहीं हैं, अपितु एक हो सत्य के तीन प्रकार हैं या एक ही शक्ति के तीन रूप हैं। व्यक्ति की शक्ति को उद्दीप्त कर उसमें गुरुतर शक्ति का संचार करने वाला गूढ़ रहस्य मन्त्र कहलाता है। मन्त्र का चित्रात्मक रूप यन्त्र तथा क्रियात्मक रूप तन्त्र है। मन्त्र के इन त्रिविध रूपों का क्रियात्मक-विज्ञान मन्त्र-साधना कहलाता है। इष्ट सिद्धि या अभीष्ट-कामना की पूर्ति इसी क्रियात्मक विज्ञान पर निर्भर रहती है। इसीलिए मन्त्र साधना की छोटी से छोटी प्रक्रिया में जरा सी भी भूल-चूक हो जाने पर मात्र असफलता ही नहीं मिलती, अपितु मन्त्र-साधक कभी-कभी दुर्धर्ष विघ्नों का शिकार हो जाता है। इस प्रकार की भूल-चूकों से बचने के लिए साधक को मन्त्रसास्त्र का आश्रय लेना चाहिए। यह शास्त्र उन सत्यों, सिद्धान्तों, शक्तियों एवं प्रक्रियाओं का ज्ञान है, जो मन्त्र साधना एवं मन्‍त्रसिद्धि के लिए अत्यावश्यक हैं।

मन्त्रशास्त्र के ग्रन्थों में मन्त्रमहोदधि का स्थान सर्वोपरि है। इस अद्भुत एवं आकरग्रन्थ की संस्कृत नौका टीका सहित रचना आचार्य महीधर भट्ट ने विक्रम सम्वत्‌ १६४५ में काशी में की थी। आचार्य महीधर वत्सगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम फनू भट्ट तथा पितामह का नाम श्री रत्नाकर भट्ट था। मन्‍त्रमहोदधि मन्त्र शास्त्र की प्रौ़तम रचना है। इसको महत्ता एवं उपादेयता आदि की यहाँ चर्चा करना व्यर्थ है, क्योंकि विज्ञ समाज इससे मलो भाँति परिचित है।

आचार्य महीधर द्वारा स्वरचित नौका संस्कृत टीका सहित प्रकाशित यह ग्रन्थ विद्वत्समाज में प्रचलित होते हुए भी अत्यन्त दुरूह माना जाता है। अतः मन्त्र साधना की जटिल गुत्थियों को सुलझाकर सरल, बोधगम्य एवं सोदाहरण हिन्दी व्याख्या लिखने की ओरे मैं प्रवृत्त हुआ । मोहिनी टीका में मन्त्रमहोदधि के भावार्थ का विवेचन करने के साथ-साथ टिप्पणी में मन्त्र साधना को प्रक्रिया की विस्तृत व्याख्या को गयी है। ग्रन्थ की प्रस्तावना में मन्त्र शास्त्र एवं मन्‍त्रयोग के आधारभूत सिद्धान्तों का साङ्गोपाङ्ग विवेचन भी किया है। इस प्रकार विस्तृत टिप्पणी एवं हिन्दी-व्याख्या सहित सर्वप्रथम प्रकाशित इस ग्रन्थ में मन्त्र शास्त्र, मन्त्रयोग एवं मन्त्र साधना के सिद्धान्तों एवं प्रक्रियाओं पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। मेरा विश्वास है कि इसको पढ़कर जिज्ञासु पाठक मन्त्र शास्त्र एवं मन्त्र साधना को जटिल गुत्थियों को आसानी से सुलझाकर मन्‍त्र साधना के रहस्य को हृदयंगम कर सकेंगे।

मोहिनी टीका के लेखन में प्रेरणाप्रद योगदान देने के लिए मैं श्रद्धेय गुरुवर श्री संकठा प्रसाद जी उपाध्याय, भू० पू० प्राचार्य, श्री माथुर चतुर्वेद विद्यालय मथुरा, का हृदय से आभारी हूँ, जिन्होंने मुझे न केवल इस कार्य को करने के लिए प्रेरित किया, अपितु अपनी अस्वस्थता के विपरीत समय-समय पर आने वाली अनेक कठिनाइयों का समाधान करने में उदारतापूर्वक सहयोग दिया। उनकी इस उदारता एवं शिष्य-वत्सलता का आभार व्यक्त करने के लिये उपयुक्त शब्दों का अभाव प्रतीत हो रहा है। मैं श्री लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्‍ली के प्राध्यापक बन्धुओं-सर्वश्री डा० हर्षनाथ मिश्र, डा० रूद्रदेव त्रिपाठी, प्रो० विनय कुमार राय तथा आचार्य रमेश चतुर्वेदी के प्रति, उनके निरन्तर सहयोग एवं सतत प्रोत्साहन के लिए हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Sanskrit & Hindi

Pages

Publishing Year

1981

Pulisher

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