Mera Desh Nikala
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Description
मेरा देश निकाला
यह आत्मकथा है शान्ति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित परम पावन दलाई लामा की, जिनकी प्रतिष्ठा सारे संसार में है और जिन्हें तिब्बतवासी भगवान के समान पूजते हैं। चीन द्वारा तिब्बत पर आधिपत्य स्थापित किए जाने के बाद 1959 में उन्हें तिब्बत से निष्कासित कर दिया और वे पिछले 51 वर्षों से भारत में निर्वासित के रूप में अपना जीवन जी रहे हैं।
1983 में जब वे केवल दो वर्ष के थे तब उन्हें दलाई लामा के रूप में पहचाना गया। उन्हें घर और माता-पिता से दूर ल्हासा के एक मठ में ले जाया गया जहाँ कठोर अनुशासन और अकेलपन में उनकी परवरिश हुई। सात वर्ष की छोटी उम्र में उन्हें तिब्बत का सबसे बड़ा धार्मिक नेता घोषित किया गया और जब वे पंद्रह वर्ष के थे उन्हें तिब्बत का सर्वोच्य राजनीतिक पद दिया गया।
एक प्रखर चिंतक, विचारक और आज के वैज्ञानिक युग में सत्य और न्याय का पक्ष लेने वाले धर्मगुरु की तरह दलाई लामा को देश-विदेश में सम्मान मिलता है। यह आत्मकथा है देश निकाला पाने वाले एक निर्वासित शांतिमय योद्धा के संघर्ष की जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर उनके गंभीर चिंतन की झलक मिलती है और जीवन के लिए प्रेरणाप्रद विचार भी।
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श्वेत कमलधारी बोधिसत्व
मैं 31 मार्च 1959 को तिब्बत से भागा। तब से आज तक मैं निर्वासित के रूप में भारत में रह रहा हूँ। सन् 1949-50 के दौरान पीपुल्स रिपिब्लिक ऑफ़ चाइना ने मेरे देश पर आक्रमण करने के लिए सेना भेजी। लगभग एक दशक तक मैं अपने देशवासियों का राजनीतिक तथा धार्मिक नेता रहा और कोशिश करता रहा कि दोनों देशों के बीच फिर से शान्तिपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जाए लेकिन यह असम्भव सिद्ध हुआ। मैं इस निर्णय पर पहुँच गया कि अब मैं बाहर ही अपने देशवासियों के लिए कुछ कर सकता हूँ।
जब मैं उस पिछले समय पर नज़र डालता हूँ जब तिब्बत भी स्वतन्त्र था, मुझे लगता है कि वे ही मेरे जीविन के सर्वोत्तम वर्ष थे। अब मैं निश्चित रूप से प्रसन्न हूँ, लेकिन अब मेरा जीवन उस जीवन से बिलकुल भिन्न है जिसमें मेरा पालन-पोषण हुआ था और यद्यपि अब उन दिनों के सुख की याद करने का कोई अर्थ नहीं है, लेकिन उन बातों को सोच कर मन उदास हो जाता है। मेरे देशवासियों ने इस बीच अपार कष्ट सहे हैं। प्राचीन तिब्बत कोई आदर्श देश नहीं था, लेकिन यह भी सत्य है कि हमारी जीवन-पद्धति दूसरों से बिलकुल भिन्न थी और उसमें निश्चित रूप से ऐसा बहुत कुछ था जिसे बचाए रखा जा सकता था, लेकिन जो सब सदा के लिए समाप्त हो गया है।
‘दलाई लामा’ शब्द का अर्थ अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग है, लेकिन मेरे लिए वह उस पद से ज्यादा नहीं है, जो मुझे उसके कारण प्राप्त हुआ। ‘दलाई’ शब्द वास्तव में मंगोलिया की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘समुद्र’, और ‘लामा’ तिब्बती भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ‘गुरु’ या ‘शिक्षक’ होता है। दोनों को मिलाकर इनका सामान्य अर्थ ‘ज्ञान का समुद्र’ किया जा सकता है, लेकिन मेरा ख्याल है कि यह सही नहीं है, भ्रम है। मूलतः, तीसरे दलाई लामा का नाम सोनम ग्यात्सो था, और ‘ग्यात्सो’ का तिब्बती भाषा में अर्थ ‘समुद्र’ होता है। दूसरी गलती मुझे यह लगती है कि चीनी भाषा में ‘लामा’ को ‘बुओ फू’ कहा जाता है, जिसका अभिप्राय ‘जीवित बुद्ध’ से लिया जाता है। लेकिन हमारे लिए यह गलत है। क्योंकि तिब्बती बौद्ध धर्म ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं मानता। यह केवल इतना ही मानता है कि कुछ व्यक्ति, जिनमें दलाई लामा भी एक हैं, अपने पुनर्जन्म का चुनाव कर सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को ‘तुल्कू’, अर्थात् अवतार कहते हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 2022 |
Pages | |
Pulisher |
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