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Description
नाकोहस
‘किस दुनिया के सपने देखे, किस दुनिया तक पहुंचे…’ इन बढ़ते, घुटन-भरे अंधेरों के बीच रोशनी की कहीं कोई गुंजाइश बची है क्या ? इसी सवाल से जूझते हमारे तीनों नायक-सुकेत, रघु और शम्स-कहाँ पहुंचे… ‘‘तीनों ? करुणा क्यों नहीं याद आती तुम्हें ? औरत है। इसलिए ?’’ नकोहस तुम्हारी जानकारी में हो या न हो, तुम्हारे पर्यावरण में है… टीवी ऑफ़ क्यों नहीं हो रहा ? सोफे पर अधलेटे से पड़े सुकेत ने सीधे बैठ कर हाथ में पकड़े रिमोट को टीवी की ऐन सीध में कर जोर से ऑफ़ बटन दबाया…बेकार…वह उठा, टीवी के करीब पहुँच पावर स्विच ऑफ किया… हर दीवार जैसे भीमकाय टीवी स्क्रीन में बदल गई है, कह रही है : ‘‘वह एक टीवी बंद कर भी दोगे, प्यारे…तो क्या…हम तो हैं न…’’ टीवी भी चल रहा है… और दीवारों पर रंगों के थक्के भी लगातार नाच रहे हैं… सुकेत फिर से टीवी के सामने के सोफे पर वैसा ही…बेजान… टीवी वालों को फोन करना होगा। कम्प्लेंट कैसे समझाऊंगा ? लोगों के सेट चल कर नहीं देते, यह सेट साला टल कर नहीं दे रहा…
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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