Nirvasan

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Author: Taslima Nasrin

Availability: 5 in stock

Pages: 256

Year: 2014

Binding: Paperback

ISBN: 9789350725993

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

निर्वासन
तसलीमा नसरीन की ‘निर्वासन’ एक स्त्री का दिल दहला देने वाला ऐसा सच्चा बयान है जिसमें वह खुद को अपने घर बंग्लादेश, फिर कलकत्ता (पश्चिम बंगाल) और बाद में भारत से ही निर्वासित कर दिए जाने पर, दिल में वापसी की उम्मीद लिए पश्चिमी दुनिया के देशों में एक यायावर की तरह भटकते हुए अपना जीवन बिताने के लिए मजबूर कर दिए जाने की कहानी कहती है। इसमें उन दिनों में लेखिका के दर्द, घुटन और कशमकश के साथ धर्म, राजनीति और साहित्य की दुनिया की आपसी मिली भगत का कच्चा चिट्ठा सामने आता है। कई तथाकथित संभ्रान्त चेहरे बेनकाब होते हैं।

बंग्लादेश में जन्मी लेखिका तसलीमा नसरीन, जो मत प्रकाश करने के अधिकार के पक्ष में पूरे विश्व में एक आन्दोलन का नाम हैं और जो अपने लेखन की शुरुआत से ही मानवतावाद, मानवाधिकार, नारी-स्वाधीनता और नास्तिकता जैसे मुद्दे उठाने के कारण धार्मिक कट्टरपंथियों का विरोध झेलती रही हैं, की आत्मकथा के तीसरे खण्ड -‘द्विखण्डतो’ पर केवल इस आशंका से की इससे एक सम्प्रदाय विशेष के लोगों की धार्मिक भावनाएँ आहत हो सकती हैं, पश्चिम बंगाल की सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया। पूरे एक साल नौ महीने छब्बीस दिन निषिद्ध रहने के बाद, हाईकोर्ट के फैसले पर यह पुस्तक इस प्रतिबन्ध से मुक्त हो सकी। पश्चिम बंगाल और बंग्लादेश में अलग-अलग नामों से प्रकाशित इस पुस्तक के विरोध में उनके समकालीन लेखकों ने कुल इक्कीस करोड़ रुपए का दावा पेश किया। पर यह सब कुछ तसलीमा को सच बोलने और नारी के पक्ष में खड़ा होने के अपने फैसले से डिगा नहीं सका। ‘निर्वासन’ भी इसी की एक बानगी है।

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Paperback

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Hindi

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Publishing Year

2014

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