Niskasan

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395.00 335.00

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Author: Doodhnath Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 143

Year: 2021

Binding: Hardbound

ISBN: 9788171197392

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

 निष्कासन

….‘दायें से देखना ठीक नहीं।’ गुरु जी ने कहा।

‘और अगर दाँयें गड्ढ़ा-गुड्ढ़ी हो तो गुरु जी ?’

‘तो ज़्यादा बाँयें झुक जाओ।’ गुरु जी बोले।

‘और अगर उधर भी हो तो ?’

‘तो आगे-पीछे हो जाओ।’

‘और अगर आगे-पीछे भी हो तो ?’

‘तो सवाल यह होगा कि तुम उस सुरक्षित, विचारहीन जगह पर पहुँचे कैसे ?’ गुरुजी ने कहा। ‘यही तो मेरी भी समझ में नहीं आता गुरु जी !’

…‘मान लीजिए आपकी बेटी है तब ? मुफ़्ती की बेटी थी तब ? तब तो सारा प्रशासन सिर के बल खड़ा हो गया था ! अपहरण और आपूर्ति में ज़्यादा फर्क नहीं है पंडित जी ! दोनों में अनिच्छित शोषण है। दोनों में हिंसा है। दोनों में बल-प्रयोग है-सिर्फ उसके तरीके में अन्तर है। दोनों में फिरौती है-एक में प्रत्यक्ष, दूसरे में परोक्ष। आप क्या समझते हैं, जो देवी जी वहाँ प्रतिष्ठित पद पर आसीन हैं और इस कुकर्म में लिप्त हैं उनका कोई निहित स्वार्थ नहीं होगा ? सिर्फ एक घिनौने मजे के लिए वे ऐसा करती होंगी ? …लेकिन नहीं, किसी खटिक की बेटी होने का क्या मतलब ? उसे नरक में डालो और हँसो। या उसे आपकी तरह ‘अन्य मामलों’ के घूरे पर डालकर रफ़ा-दफ़ा कर दो।’ महामहिम खाँसने लगे।’

कटुए, क्रिश्चियन और कम्युनिस्ट, तीनों देशद्रोही हैं – अन्ततः यह उनका और उनकी पार्टी का खुला-छिपा राजनैतिक नारा है। ‘यह कम्युनिस्टों की साजिश है सर ! कुलपति ने कहा। महामहिम ने पीछे खड़े अपने प्रमुख सचिव को देखा, जैसे कह रहे हों, उस दिन लॉन में टहलते हुए मैंने आपको बेकार ही डाँटा था।

‘ये फ़ाइल है सर ! कुलपति ने फाइल प्रमुख सचिव की ओर बढ़ायी। ‘नहीं’ उसकी अब कोई जरूरत नहीं।’ महामहिम ने हाथ के इशारे से मना किया।

…जो कुछ असुन्दर है, अभद्र है, मनुष्यता से रहित है, वह उसके लिए (साहित्यकार के लिए) असहय हो जाता है। उस पर शब्दों और भावों की सारी शक्ति से वार किया करता है।….जो दलित है, पीड़त है, वंचित है – चाहे वह व्यक्ति हो या समूह-उसकी हिमायत और वकालत करना उसका फ़र्ज है।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2021

Pulisher

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