Paap Aur Punya

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300.00 255.00

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Author: Gurudutt

Availability: 4 in stock

Pages: 208

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9789355211521

Language: Hindi

Publisher: Prabhat Prakashan

Description

पाप और पुण्य

यशस्वी रचनाकार स्व. गुरुदत्त ने रसायन विज्ञान (कैमिस्ट्री) में एम.एस-सी. करने के पश्चात्‌ आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया, साथ-ही-साथ भारतीय आर्षषष ग्रंथों का गहन अध्ययन किया।

उन्होंने अपने पाठकों को अपने उपन्यासों के पात्रों के माध्यम से इन ग्रंथों का ज्ञान अत्यंत रुचिकर ढंग से दिया। प्रस्तुत उपन्यास ‘पाप और पुण्य’ की पात्र श्रीमद्भगवद्गीता के संदर्भ से पाप और पुण्य को परिभाषित करती है। वह समझाती है कि कुछ कार्य पाप नहीं होते, परंतु कानून की दृष्टि में अपराध होते हैं । इसी प्रकार कई कार्य कानून की दृष्टि में अपराध न होते हुए भी पाप होते हैं। ऐसा क्‍यों है ? यही इस उपन्यास का विषय है।

रोचकता से भरपूर कथा वर्तमान कानून व्यवस्था पर करारी चोट करती है। लेखक अपने इस पठनीय उपन्यास के पात्रों के माध्यम से हमें उस राह पर चलने का परामर्श देते हैं, जो न पापमय हों और न ही वर्तमान कानून की दृष्टि में अपराध हों। उपन्यास की तेज गति पाठक को बाँधकर रखती है और वह इसे आरंभ कर समाप्त किए बिना नहीं छोड़ सकता ।

– पदमेश दत्त

प्रथम परिच्छेद

‘दिल्‍ली विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भारत के शिक्षा मंत्री ने अपना दीक्षांत भाषण समाप्त किया और उपकुलपति ने मंत्री महोदय का धन्यवाद कर दिया।

समारोह के उपरांत मंत्री महोदय मंच से नीचे उतरे तो उपकुलपति उनके साथ-साथ चल पड़े। वे मंत्री महोदय को उनकी मोटर तक पहुँचाने जा रहे थे। विश्वविद्यालय की सीनेट के सदस्य और कुछ अन्य अधिकारी भी मंत्री महोदय के पीछे-पीछे चल पड़े थे।

प्रायः विद्यार्थी दीक्षा-भवन के दूसरे दरवाजों से भवन के बाहर निकल रहे थे। इस पर भी विद्यार्थी बहुत बड़ी संख्या में मंत्री महोदय और उनके पीछे-पीछे जा रहे सीनेट के सदस्यों एवं अधिकारियों के जुलूस के मार्ग के दोनों ओर पंक्तियों में आ खड़े हुए थे।

इन विद्यार्थियों में एक लड़की भी खड़ी थी। वह अभी भी समारोह के समय का गाऊन पहने हुए थी और उसके हाथ में अपने एम.ए. की परीक्षा में उत्तीर्ण होने का प्रमाण-पत्र पकड़ा हुआ था।

लड़की के पीछे उससे चार इंच ऊँचा एक युवक खड़ा था। उसके हाथ में भी सावधानी से तह किया प्रमाण-पत्र था। परंतु उसने गाऊन अपनी बाईं भुजा पर लटकाया हुआ था। लड़का चौड़ी छाती, सुदृढ़ शरीर, कोट-पतलून पहने तथा नेकटाई लगाए लड़की के पीछे से मंत्री महोदय का जा रहा जुलूस देख रहा था।

मंत्री महोदय की सवारी निकल गई तो लड़के ने कुछ झुककर, लड़की के कान के समीप मुख ले जाकर कह दिया, ‘आपके स्वर्णपदक पाने की आपको बधाई देता हूँ।’

लड़की का ध्यान अपने ब्लाउज की जेब में रखी पदक की डिबिया की ओर गया तो अनायास उसका हाथ उस जेब की ओर चला गया। वहाँ डिबिया को सुरक्षित देख, आश्वस्त हो, वह घूमकर, लड़के की ओर देखकर बोली, “शुक्रिया, आपका शुभ परिचय ?” वह लड़के को जानती नहीं थी। इस पर भी उसके मुस्कराते हुए मुख को देख वह प्रभावित हुई थी। उसने आगे कह दिया, “पहले कभी आपके दर्शन नहीं हुए ?”

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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