Samay Ke Shahar Mein

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Samay Ke Shahar Mein

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299.00 229.00

Author: Anamika

Availability: 5 in stock

Pages: 178

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9789389563016

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

समय के शहर में

कविता है तो सपने हैं, हौसला है, हिम्मत है और स्पेसवॉक सम्भव है। कभी-कभी लगता है, मैं लिखती हूँ उसी स्पेस के लिए, उस पानी के लिए जिसे पत्थर पी जाता है, उस अग्नि के लिए जो हमारी धमनियों में बहती है। जो ‘कुछ’ भी हो सकता है, मैं उसके लिए लिखती हूँ। सपने ही मेरी स्लेट हैं, स्मृतियाँ मेरी दावात, एक अव्यक्त प्रेम मेरी स्याही…. प्रेम का एक अनन्त गर्भ मुझे हर किसी में दीखता है। एक धाय माँ की तरह बूढ़े गड़ेरिया से धैर्य माँगना चाहती हूँ कि हर जचगी में सहायक होऊँ। कुलम ही तब मुझे नाल काटने में मदद करने वाला एकमात्र औज़ार होगी। फिर वह नाल मैं फेंकूँगी भी नहीं क्योंकि मुझे यह पता है, आत्मा को संपुष्ट करने वाली औषधि, सब क्रॉनिक रोगों का इलाज यही नायाब बन्धन है, नाभिनाल का बन्धन-पर्सनल का पॉलिटिकल से, घर का बाहर से, शरीर का आत्मा से, गाँव का शहर से देश का विश्व से।

यहाँ एक बात जो विशेष जोर देकर कहना चाहूँगी वह यह कि अच्छाई कविता का बाई प्रोडक्ट है। नदियाँ अपनी मौज में बहती हैं सभ्यताओं की नींव सींचने की ख़ातिर नहीं बहतीं, पर उनके बहने में ही कोई बात ऐसे होती है कि तट पर सभ्यताएँ पूरे वैभव में चटककर खिल जाती हैं। सूरज फसलें उगाने के गम्भीर उद्देश्य से नहीं जगता, वह अपनी बेखुदी में जगता है, पर उसके जगने से फसलें पक जाती हैं।

विश्व कविता का इतिहास ध्यान से पढ़ते हुए यह सूत्र तो मन में कौंधता ही है कि उत्पादन के साधन जब-जब बदले, या ज़मीन से आदमी का नाता जब-जब बदला, उसकी सोच का आकाश भी। कृषि, उद्योग और कम्प्यूटर शासित तीन अलग युगों के दहराकाश में अलग-अलग रंगों में बादल घुमड़े और आदमी का औरत से, स्वामी का मातहत से, बाप-माँ से जो भी नाता होता है, उसके रंग-रूप का यह टेक्सचर भी बदल गया। इसके साथ ही धर्म आचार-संहिताएँ और राजनीति के छन्द भी बदले। कविता ने चुपचाप सब आत्मसात किया और युग को समझने की कुछ कुंजियाँ तकिए के नीचे रख छोड़ीं- आने वाली नस्लों के लिए।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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