Samyavaad Hi Kyun

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Author: Rahul Sankrityayan

Availability: 5 in stock

Pages: 82

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9788122501735

Language: Hindi

Publisher: Kitab Mahal Publishers

Description

साम्यवाद ही क्‍यों

हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम इतिहास-प्रसिद्ध और अमर विभूतियों में गिना जाता है। राहुल जी की जन्मतिथि 9 अप्रैल, 1893 ई. और मृत्युतिथि 14 अप्रैल, 1963 ई. है। राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था। बौद्ध दर्शन से इतना प्रभावित हुए कि स्वयं बौद्ध हो गये। ‘राहुल’ नाम तो बाद में पड़ा-बौद्ध हो जाने के बाद। ‘सांकत्य’ गोत्रीय होने के कारण उन्हें राहुल सांकृत्यायन कहा जाने लगा।

राहुल जी का समूचा जीवन घुमक्कड़ी का था। भिन्न-भिन्न भाषा साहित्य एवं प्राचीन संस्कृत-पाली-प्राकृत-अपभ्रंश आदि भाषाओं का अनवरत अध्ययन-मनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य उनमें था। प्राचीन और नवीन साहित्य-दृष्टि की जितनी पकड़ और गहरी पैठ राहुल जी की थी-ऐसा योग कम ही देखने को मिलता है। घुमक्कड़ जीवन के मूल में अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वोपरि रही। राहुल जी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत सन्‌ 1927 ई. में होती है। वास्तविकता यह है कि जिस प्रकार उनके पाँव नहीं रुके, उसी प्रकार उनकी लेखनी भी निरन्तर चलती रही। विभिन्न विषयों पर उन्होंने 150 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है। अब तक उनके 130 से भी अधिक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों, निबन्धों एवं भाषणों का गणना एक मुश्किल काम है।

राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीन-नवीन भारतीय साहित्य में थी, अपितु तिब्बती, सिंहली, अंग्रेजी, चीनी, रूसी, जापानी आदि भाषों की जानकारी करते हुए तत्तत्‌ साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला। राहुल जी जब जिसके सम्पर्क में गये, उसकी पूरी जानकारी हासिल की। जब वे साम्यवाद के क्षेत्र में गये, तो कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की। यही कारण है कि उनके साहित्य में जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है।

राहुल जी बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न विचारक हैं। धर्म, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रासाहित्य, इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोश, प्राचीन तालपोथियों का सम्पादन-आदि विविध क्षेत्रों में स्तुत्य कार्य किया है। राहुल जी ने प्राचीन के खण्डहरों से गणतंत्रीय प्रणाली की खोज की। ‘सिंह सेनापति’ जैसी कुछ कृतियों में उनकी यह अन्वेषी वृत्ति देखी जा सकती है। उनकी रचनाओं में प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है। यह केवल राहुल जी थे जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य-चिन्तन को समग्रतः आत्मसात्‌ कर हमें मौलिक दृष्टि देने का निरन्तर प्रयास किया है। चाहे साम्यवादी साहित्य हो या बौद्ध दर्शन, इतिहास-सम्मत उपन्यास हो या ‘वोल्गा से गंगा’ की कहानियाँ-हर जगह राहुल जी की चिन्तक वृत्ति और अन्वेषी सूक्ष्म दृष्टि का प्रमाण मिलता जाता है। उनके उपन्यास और कहानियाँ बिलकुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं।

समग्रतः यह कहा जा सकता है कि राहुल जी न केवल हिन्दी साहित्य अपितु समूचे भारतीय वाङ्मय के एक ऐसे महारथी हैं जिन्होंने प्राचीन और नवीन, पौर्वात्य एवं पाश्चात्य, दर्शन एवं राजनीति और जीवन के उन अछूते तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिन पर साधारणतः लोगों की दृष्टि नहीं गई थी। सर्वहारा के प्रति विशेष मोह होने के कारण अपनी साम्यवादी कृतियों में किसानों, मजदूरों और मेहनतकश लोगों की बराबर हिमायत करते दीखते हैं।

विषय के अनुसार राहुल जी की भाषा-शैली अपना स्वरूप निर्धारित करती है। उन्होंने मान्यतः सीधी-सादी सरल शैली का ही सहारा लिया है जिससे उनका सस्पूर्ण साहित्य-विशेषकर कथा-साहित्य-साधारण पाठकों के लिए भी पठनीय और सुबोध है।

प्रस्तुत पुस्तक ‘साम्यवाद ही क्‍यों ?’ में महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने साम्यवाद से सम्बन्धित जानकारी कराने की कोशिश की है। समाज का विकास होते-होते एक मंजिल पर साम्यवाद क्‍यों आ गया-इसे इतिहास-चक्र का एक अध्याय कहा जा सकता है। विश्व में साम्यवाद लाने के लिए पर्याप्त कारक उसी तरह मौजूद हो गये थे जिस तरह पूँजीवाद के लिए हो गये थे। दरअसल साम्यवाद के मूल में भयंकर दरिद्रता प्रमुख कारण रही है। आज का आधुनिक विज्ञान भी साम्यवाद का समर्थन करता है। लेखक ने अपनी भूमिका में लिखा है-“जो दो-तीन घंटे में साम्यवाद को समझना चाहते हैं, उनके लिए यह प्रवेशिका है।” पहले संस्करण की भूमिका से-“लेखक के एक मित्र ने बात चलते कहा था-‘साम्यवाद ही क्यों’ अच्छा होगा, किन्तु ‘साम्यवाद कैसे होगा’ इस पर भी लिखना चाहिए।……..मैंने उस पर कई बार सोचा, किन्तु मैं अपने को उसके लिए बिलकुल अयोग्य और ना-तैयार समझता हूँ।” साम्यवाद के बारे में इस पुस्तक से जिज्ञासुओं को पर्याप्त जानकारी मिलेगी-ऐसा विश्वास है।

 

अनुक्रम

       मनुष्य की उत्पत्ति और विकास

★       पूँजीवाद की उत्पत्ति

★       साम्यवाद क्यों पैदा हुआ ?

★       क्या पीछे लौटा जा सकता है ?

★       हमारी भयंकर दरिद्रता की दवा साम्यवाद

★       हमारे सामाजिक रोग और साम्यवाद

★       साम्यवाद और अच्छी संतान

★       साम्यवाद तथा धर्म और ईश्वर

★       साम्यवाद और स्त्रियों की परतंत्रता

★       साम्यवाद और मुसोलिनी तथा हिटलर के ढंग

★       साम्यवाद और व्यक्तिगत स्वतंत्रता

★       साम्यवाद में यन्त्रों से प्राप्त अवकाश का उपयोग

★       साम्यवाद का भविष्य और उसके शत्रु-मित्र

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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