Sanatan

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Author: Sharankumar Limbale Translated by Padmaja Ghorpade

Availability: 5 in stock

Pages: 216

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9789389915464

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

सनातन

हिन्दू धर्म ने अस्पृश्यों का और आदिवासियों का कल्पनातीत नुक़सान किया है। इसका हिसाब अभी तक लगाया नहीं गया है। तो मुआवज़ा कैसे दिया जायेगा ? यह उपन्यास इसी नुक़सान के सम्बन्ध में कुछ कह रहा है। आपदग्रस्तों को मुआवज़ा दिया जाता है। यहाँ तो हज़ारों की तादाद में लोग सदियों से गरीबी और अज्ञान में तड़प रहे हैं। उनके विस्थापन का हिसाब लगाना होगा। अतल तक खंगालना होगा। अधिक देर तक इसे नज़र अन्दाज़ नहीं किया जा सकता।

यह उपन्यास इसकी ओर संकेत देता है। किसी एक धर्म की बात करना यानी समूचे भारत के बारे में बात करना नहीं होता। यह उपन्यास ख़ासकर दलितों के बारे में कुछ कहना चाहता है। सभी धर्मों ने, प्रदेशों ने, भाषाओं और संस्कृतियों ने दलितों को सहजीवन से ख़ास दूरी पर ही रखा। उनको अपवित्र माना। उनसे दूरी ऐसी बरती कि भेदभाव बन गया। दलित अलग-थलग हो गये। यही दिखाने का प्रयास इस उपन्यास में किया गया है।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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