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Description
संलाप
अपनी साफ़गोई, कथा-विषयों की विविधता और अपनी रचनाओं के लिए श्रम-साध्य शोध और उद्यमिता के लिए सुपरिचित कथाकार भगवानदास मोरवाल इस पुस्तक में उन मुद्दों पर बात कर रहे हैं, जिनका ताल्लुक उनके लेखन, उनकी पुस्तकों, और पात्रों के अलावा हमारे समय, समाज और हिन्दी साहित्य के परिदृश्य से भी है।
इस पुस्तक में उनके साक्षात्कार संकलित हैं। ये साक्षात्कार न सिर्फ़ उनके बारे में बताते हैं, बल्कि इन प्रश्नोत्तरों के माध्यम से भारतीय समाज के विरोधाभासों, उसकी बेचैनियों और बतौर एक नागरिक लेखक की ज़िम्मेदारियों पर भी रौशनी डालते हैं।
‘काला पहाड़’ जैसे चर्चित उपन्यास से हिन्दी क्षितिज पर उभरे मोरवाल यहाँ इसके अलावा अन्य उपन्यासों की रचना-प्रक्रिया और उनके साथ जुड़े अपने सरोकारों को भी रेखांकित करते हैं।
अपने समाज और ख़ासतौर पर, मेवात क्षेत्र की सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक बनावट से उनका गहरा परिचय रहा है, जो उनके कई उपन्यासों में भी प्रकट हुआ है, यहाँ इस बारे में वे और विस्तार से बात करते हैं; समाज और साहित्य के विभिन्न मुद्दों पर उनकी बेलाग अभिव्यक्ति तो इन साक्षात्कारों का आकर्षण है ही।
Additional information
Authors | |
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ISBN | |
Binding | Hardbound |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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