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शुभदा
प्रथम खण्ड
गरदन तक गंगाजल में खड़ी महाराजिन कृष्णप्रिया ने आंखों और कानों को अपने हाथों की अंगुलियों से ढककर तीन डुबकियां लगायीं और फिर अपनी पीतल की कलसी में जल भरते हुए बुदबुदायी, ‘‘जब किसी का भाग्य फूटता है, तो यही परिणाम निकलता है।’’
घाट पर नहा रहीं अन्य तीन-चार स्त्रियों ने महाराजिन की बड़बड़ाहट सुनी तो वे उसके चेहरे की ओर देखने लगीं किंतु किसी को उस झगड़ालू स्त्री से पूछने का, उससे तर्क करने का अथवा उसकी बात काटने का साहस नहीं हुआ। संयोगवश, नहा रही सभी स्त्रियां आयु में उससे छोटी थीं।
महाराजिन की बौखलाहट विन्ध्यवासिनी को सम्बोधित थी। बड़े बाप की बेटी और बड़े घर की यह बहू आजकल अपने मायके आयी हुई है। बिन्दो ने साहस जुटाकर पूछा, ‘‘बुआजी ! क्या बात है ?’’
महाराजिन बोली, ‘‘मैं हारान मुखर्जी के दुर्भाग्य की चर्चा कर रही थी। वास्तव में, बिन्दो एक महीना पहले हारान मुखर्जी के पांच-छह वर्षीय लड़के की मृत्यु का समाचार सुन चुकी थी।’’ उसी का उल्लेख करते हुए वह उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करने लगी और बोली, ‘‘भगवान् के आगे किसी का क्या वश चलता है, फिर जीना-मरना, तो सबके यहां लगा ही रहता है।’’
सुनकर चुप हो गयी कृष्णप्रिया थोड़ी देर बाद बोली, ‘‘बिन्दो ! तू सच कहती है कि किसी का जीना-मरना तो ऊपर वाले के हाथ में, किन्तु मुखर्जी के लड़के की मृत्यु की बात नहीं कर रही थी। मैं तो दूसरी बात कह रही थी।’’
विन्ध्यवासिनी को उत्सुकता से अपने चेहरे पर ताकते हुए देखकर कृष्णप्रिया बोली, ‘‘शायद तुम्हें हारान मुखर्जी के बारे में अभी तक कुछ मालूम नहीं।’’
बिन्दो ने पूछा, ‘‘उनके जीवन में कुछ नया घट गया क्या ?’’
‘‘बेटी ! मैं वही तो तुम्हें बताने लगी हूं। भगवान् जिससे रूठते हैं, तो उस व्यक्ति का भाग्य इसी बुरी तरह फूटता है। मुझे तो इस बूढ़े खूसट के बारे में कुछ नहीं कहना है, मेरी चिन्ता और सहानुभूति तो सोने की मूर्ति उस मासूम बहू के प्रति है, जो बेचारी इस कलमुहे के पल्लू में बंधकर सुख शब्द तक से कभी परिचित नहीं हो सकी।’’
पहले की भांति कृष्णप्रिया के चेहरे पर ताकती बिन्दो समझ न सकी कि महाराजिन पहेलियां क्यों बुझा रही है ? मूल विषय से क्यों नहीं कहती ? घाट पर उपस्थित सभी स्त्रियों की उत्सुकता अपनी चरम सीमा पर पहुंच गयी थी। वे चकित होकर सोच रही थीं कि आख़िर हारान मुखर्जी के घर में ऐसा क्या घटित हो गया है, जिसकी जानकारी सारी दुनिया को है, किन्तु उन्हें उसके बारे में कुछ पता नहीं है !
काफ़ी देर तक सोच-विचार करने के बाद बिन्दो बोली, ‘‘बुआजी ! क्या आप वह बात हमें बताना ठीक नहीं समझतीं ?’’
महाराजिन बोली, ‘‘बेटी ! ऐसा कुछ नहीं है, किन्तु कहने को इसलिए मन नहीं करता; क्योंकि वह कुछ सुखद नहीं। उलटा, उसकी चर्चा करने से कलेजा फटने लगता है। भगवान् ने भी ऐसी स्त्री के भाग्य में इतना अधिक कष्ट लिखकर एक प्रकार से अन्याय ही किया है।’’
‘‘बुआजी ! आप किसके कष्ट की बात कर रही हो ?’’
‘‘बेटी ! कष्ट, व्यथा और वेदना का कोई एक रूप हो, तो मैं उसका वर्णन तुम लोगों से करूं ?’’
‘‘कुछ तो बताओ।’’
‘‘मैं अभी अपना मुंह नहीं खोलती। समय आने पर सबको अपने आप पता चल जायेगा। वैसे तो सबको पता चल ही गया है। थोड़ा पहले पीछे-वाली बात है। तुम लोगों को भी सब पता चल ही जायेगा।’’
‘‘क्या आप कुछ नहीं बताओगी ?’’
‘‘नहीं मैंने किसी से कुछ न कहने का पक्का विचार बना लिया है।’’
हंसकर बिन्दो बोली, ‘‘क्या हम आपकी बेगानी हैं ? क्या आप झूठ कहने लगी हैं ?’’
किन्तु गंगाजल के भीतर खड़ी महाराजिन बोली, ‘‘किसी से न कहने का वचन ले चुकी हूं। अब कहूं भी, तो भला कैसे कहूं ?’
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2012 |
Pulisher |
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